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हथेली में सुराख

कविताएं
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सुदर्शन गासो

सभ्यता के ऊंचे मुकाम पर

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तरक्की के ऊंचे स्थान पर

बैठा इन्सान मुस्कुराता है

अपनी तरक्की पर इतराता है!

हाथ में हथगोला लिए

लोगों को हंसाने का प्रयास

करता है! कि अचानक

गोला चल जाता है!

हथेली में सुराख हो जाता है।

अब सभ्यता की

हथेली में सुराख है!

इसीलिए आज के दौर के

इन्सान की प्राप्तियां

उसी की हथेली से धीरे-धीरे

गिरती जा रही हैं!

अब इन्सान मुस्कुराने की जगह

खिसियाता है।

आम का खास

फूल तो मुझे

सभी तरह के सुन्दर लगते हैं!

फिर भी

गेंदा मुझे ज्यादा सुन्दर लगता है!

गेंदा का फूल लगता है।

मुझे ज्यादा सहज

जैसे हो

आम लोगों का प्रतिनिधि

उन जैसा!

फूलों की खूबसूरती के आगे

मैं हमेशा झुक-झुक जाता हूं!

करता हूं उन्हें प्रणाम

करता हू्ं उनकी चरण-वंदना !

ताकि... शायद!

मैं भी बन सकूं कभी

फूलों जैसा

बांट सकूं

खुशबू दुनिया को!

भर सकूं दुनिया के जर्रे-जर्रे में

महक... आनंद

और खुबसूरत रंग!

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Tags :
सुराखहथेली
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