पुस्तक समीक्षा
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साहित्य
धीरा खंडेलवाल ख्वाबों का एक्सरे कराया, कितने पूरे, रहे अधूरे, कितने टूट गए तिल-तिल, खर्चे का न हिसाब लगाया, जब मैंने ख्वाबों का एक्सरे कराया। अजब-गजब था यंत्र बंधुवर, बोला शून्य करो मन-गह्वर, अचल रुको और रोको सांस, भीतर बचे...
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राजेंद्र कुमार कनोजिया नया साल बड़ा कमाल करते हैं, जो गुपचुप काम करते हैं। कभी बरसा नहीं करते, जो बादल शोर करते हैं। समंदर कितना गहरा है, कभी नापा नहीं करते। किश्तियां को हवाएं, लेके उसके पार जाती हैं।...
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