शशि सिंघल
लेखिका प्रगति गुप्ता का नया कहानी संग्रह ‘स्टेपल्ड पर्चियां’ जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों, मनोभावों व मानवीय संवेदनाओं को परत-दर-परत उधेड़ता संग्रह है। हर इंसान के जीवन में जाने अनजाने ऐसी कितनी ही घटनाएं व बातें अच्छी-बुरी परतों के रूप में होती है जिन्हें इंसान अलग-अलग गड्डियां बनाकर अपने मन मस्तिष्क के किसी कोने में स्टेपल कर देता है और गाहे-बगाहे वह इन परत रूपी पर्चियों को उलटता-पलटता रहता है। प्रगति गुप्ता ने अपने इस संग्रह की ग्यारह कहानियों में मानव मन के कोने में छिपी उनकी भावनाओं और संवेदनाओं को कुरेदा है। साथ ही आज समाज के बदलते परिवेश, बदलती जीवनशैली, आधुनिकता के नाम पर बिखराव की ओर बढ़ चली युवा पीढ़ी तथा समाज से जुड़ी तमाम विसंगतियों पर अपनी पैनी नजर डाली है।
संग्रह की पहली कहानी ‘अदृश्य आवाजों का विसर्जन’ में शरीर से मुक्त हो चुकी आत्माओं की आपसी बातचीत के माध्यम से देश में हो रही भ्रूण हत्याओं की वजह का मार्मिक वर्णन है। वहीं दोहरी भूमिका निभा रही महिला के अंदर छिपे मर्म को उघाड़ते हुए सच का आईना है कहानी ‘गुम होते क्रेडिट कार्ड’। एक पढ़ी-लिखी महिला अपने अच्छे-भले करिअर को अपने परिवार की देखभाल के नाम पर होम कर देती है। कहानी में पुरुष का दोगलापन साफ झलकता है। आज भी ऐसे अनेक घर मिल जाएंगे जहां पुरुष अपने परिवार की जिम्मेदारी पत्नी पर डालकर स्वयं स्वच्छन्द हो विचरण करता है। ‘खिलवाड़’ कहानी में दर्शाया है कि आज का युवा पढ़-लिख कर मोटी-मोटी तनख्वाह तो पा रहा है लेकिन वह पार्टीबाजी व नशे की गिरफ्त में आकर अपनी जिन्दगी से खिलवाड़ करने लगा है। युवाओं की मनमानियों के आगे लाचार मां व दागदार होती उसकी परवरिश देखकर कलेजा सौ बार मुंह को आने लगता है। ‘अनुत्तरित प्रश्न’ में हरेक के कुछ न कुछ प्रश्न अनुत्तर ही रह जाते हैं। एक बददिमाग व बिगड़ैल भूमि की कहानी ‘तमांचा’ हमारी तार-तार होती संस्कृति पर करारा तमाचा है। हिन्दू संस्कृति में शराब, गांजा-चरस का सेवन करना तथा गाली-गलौज करना एकदम निषेध है, वह चाहे स्त्री हो या पुरुष। ‘सोलह दिनों का सफर’, ‘गलत कौन’, ‘काश’, ‘बी-प्रैक्टिकल’, एवं ‘मां! मैं जान गयी हूं’ कहानियां समाज में व्याप्त विसंगतियों, घुटन व मानवीय सरोकारों की ऐसी उद्भावना है जो नयी पीढ़ी को संस्कारों की धरोहर सौंपते हुए उनका इंसानियत से परिचय करवाती हैं।
‘स्टेपल्ड पर्चियां’ कहानी संग्रह के शीर्षक को सार्थक करती कहानी है। लेखिका कहानी की नारी पात्र की खुद से पहचान कराती हैं ‘आज कॉफी के उड़ते धुएं में सहेजी हुई पर्चियां वापस धुंधली होकर खाली होने लगी थीं। ताकि कुछ नई इबारतें फिर से लिखी जाएं।’
संग्रह की सभी कहानियां घटना प्रधान होते हुए भी गहन मानवीय संवेदनाओं को सामने लाती हैं। कहानियां पढ़ते समय ऐसा महसूस होता है कि कहानी में मुख्य पात्र हम ही हैं और कहानी हमारे ही इर्दगिर्द घूम रही है।
पुस्तक : स्टेपल्ड पर्चियां लेखिका : प्रगति गुप्ता प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली पृष्ठ : 110 मूल्य : रु. 220.