मेरी नानी
सबसे अच्छी लगती है,
मुझको तो मेरी नानी।
रोज रात को सुनाती है,
मुझे एक नयी कहानी।
बाजार मुझे ले जाती,
करे नहीं आना-कानी।
नानी खूब खिलाती है,
दही बड़े पूड़ी पानी।
लंबे लंबे डग भर कर,
तेज तेज चले नानी।
पैदल चाल में नहीं है,
नानी का कोई सानी।
नानी के घर जाकर,
करें खूब हम शैतानी।
ना होम वर्क की टेंशन,
करते फिरते मनमानी।
– भूपसिंह ‘भारती’
फूलों की सोच
ऋतु बसंत के आते ही
फूलों ने ली अंगड़ाई।
बहुत सो लिए सरदी में
अब तो उठना है भाई।
उपवन उपवन जाकर हमको
अब फिर से है खिलना।
तितली से भंवरों से जाकर
गले खूब है मिलना।
मधुमक्खी भी आएगी
अपना भोजन ले जाने।
चलो सभी से मिलना होगा
इस मौसम के बहाने।
खुशबू देकर हम पूरी
दुनिया को महकाएंगे।
छोटा सा जीवन है फिर भी
काम बहुत आएंगे।
– कुसुम अग्रवाल
बांध लिया बिस्तर
बांध लिया बिस्तर सर्दी ने
अब जाने की बारी,
बोली, भैया फिर आऊंगी
समझो है लाचारी।
गर्मी के आने का सिग्नल
मिल गया कुछ ऐसे,
एटीएम करता है खड़खड़
जब देता है पैसे।
बहुत शिकायत करते थे तुम
सर्दी बहुत सताती,
चार रजाई ओढ़ें फिर भी
नींद नहीं थी आती।
फिर क्यों गर्मी के आने पर
याद मुझे करते हो,
मुझे तो लगता मुझसे ज्यादा
तुम उससे डरते हो।
हर मौसम कुछ कहता हमसे
गाकर नया तराना,
सब का लुत्फ उठाना सीखो
करो, जो मन में ठाना।
– इंद्रजीत कौशिक