कृष्णलता यादव
‘नमिता सिंह मूंछों वाली,’ रक्तदान-प्रणेता, समाजसेवी, शिक्षाविद् एवं साहित्य संवर्धक मधुकांत की सद्य प्रकाशित चरित्रप्रधान औपन्यासिक कृति है। यह नारी विमर्श की एक नई इबारत लिखती है कि नारी भी नर की भांति प्रतिभावान होती है। कृति का केन्द्रीय भाव है कि नर-नारी एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी नहीं, सहयोगी हैं। स्नेह, प्रेम, सौहार्द, आकर्षण तथा सृजनशीलता के कारण दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे की शक्ति आधी है। चूंकि आधा भाग अधूरेपन से ग्रस्त होता है, इसलिए आशानुरूप परिणाम नहीं मिलते। अत: दोनों अपनी-अपनी मर्यादा का पालन व एक-दूसरे का भरपूर सम्मान करते रहें।
मर्द शारीरिक संरचना से नहीं बल्कि मजबूत इरादों व एक-दूसरे के सहयोग से भी बना जा सकता है। उपन्यास की नायिका नमिता सिंह को नमिता सिंह मूंछों वाली बनाने में एक ओर उसका आत्मबल है तो दूसरी ओर माता-पिता, सहपाठियों, गांव-पंचायत, प्रशासनिक अधिकारी आदि का सम्मिलित सहयोग है। तभी उसका साहस, आत्मविश्वास घोषणा कर पाया–‘कल चलते हैं, दहेज मांगने वालों का ऐसा डंका बजाकर आते हैं कि उनका पड़ोसी भी दहेज की मांग नहीं करेगा।’
नारी विमर्श के अतिरिक्त रक्तदान, स्वच्छता अभियान, कन्या भ्रूण-हत्या निराकरण, दहेज उन्मूलन आदि विषयों पर लेखनी समानान्तर चली है। कृति को फोर इन वन की संज्ञा दी जा सकती है यानी डायरी, नाटक, लघुकथा विधाओं को इसमें यथोचित स्थान मिला है। पाठक आठ लघुकथाओं, एक नाटक, डायरी के अनेक पन्नों से गुजरते हैं।
उपन्यास की भाषा मुहावरेदार, सादगीपूर्ण व आंचलिकता का पुट लिए हुए है। पात्रों की अनावश्यक भीड़ जुटाने से बचा गया है। उपन्यास हर प्रकार से पठनीय, संग्रहणीय है।
पुस्तक : नमिता सिंह मूंछोंवाली लेखक : मधुकांत प्रकाशक : दिशा प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 108 मूल्य : रु. 300.