मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

प्रेम के क्षण

कविता
Advertisement

निशी सिंह

हिमाच्छादित धवल शिखर के मध्य

Advertisement

सप्तरंग धरा है जहां।

नीले वातायन तले, सुनहली धूप में

चटक सिंदूरी रंग के टेसू खिले-खिले।

रूपहली चांदनी के आंचल पर

टांक देती श्यामला सांझ सितारे।

दूर क्षितिज के भाल पर

सजा था भोर का तारा।

कुछ कहे-अनकहे,

कुछ बुझे-अनबुझे सवाल लिए

मिली थी तुमसे प्रेम की सौगात लिए।

अंकुर फूटा था, चटकी थी कली-कली,

कालचक्र के साथ-साथ

बरस बन गए कितने दिन,

पौधे अब दरख्त बन गए।

प्रिये, क्या उन क्षणों की

पुनरावृत्ति संभव नहीं?

वो क्षण, जब मुखरित हुआ था मौन भी,

प्रणय-सत सराबोर वह क्षण,

सृजना का क्षण—।

Advertisement
Show comments