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गीता का आधुनिक जीवन-दर्शन

पुस्तक समीक्षा

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विवेक शर्मा

डॉ. नीलम वर्मा की पुस्तक ‘श्रीमद्भगवद्गीता—अराइज़, ओ भारत’ गीता के अमूल्य संदेश को आधुनिक दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने का एक प्रभावशाली प्रयास है। यह कृति न केवल एक धार्मिक ग्रंथ की व्याख्या है, बल्कि आत्म-जागरण और जीवन-दर्शन का मार्गदर्शन भी प्रदान करती है।

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पुस्तक को 18 अध्यायों में विभाजित किया गया है, जिन्हें तीन खंडों—अध्याय 1 से 6, 7 से 12 और 13 से 18—में बांटा गया है। पहले खंड में अर्जुन की मानसिक दुविधा से लेकर योग, कर्म और समर्पण की अवधारणाओं को समझाया गया है। दूसरे खंड में ब्रह्मांड की व्यापकता, ईश्वर के विश्वरूप और भक्ति के स्वरूप को उजागर किया गया है। तीसरे खंड में आत्मा की अमरता, माया के भ्रम और आस्था की शक्ति को सरल भाषा में स्पष्ट किया गया है।

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लेखिका की भाषा भावपूर्ण, सरल और काव्यात्मक है। उन्होंने संस्कृत श्लोकों का प्रयोग मूल भावना को बनाए रखते हुए किया है, जिससे गीता का पारंपरिक स्वरूप भी सम्मानित होता है और आज का पाठक भी सहजता से जुड़ पाता है।

विशेष रूप से अर्जुन की दुविधा, श्रीकृष्ण का उपदेश और मन की स्थिरता की बातों को लेखिका ने सरल और भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है।

यह पुस्तक उन पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी है, जो मौजूदा जीवन के प्रश्नों से जूझ रहे हैं और नई दिशा की तलाश में हैं। यह पुस्तक गीता को एक जीवंत और व्यावहारिक जीवन-दर्शन के रूप में प्रस्तुत करती है, जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।

पुस्तक : श्रीमद्भगवद्गीता – अराइज़, ओ भारत! लेखिका : डॉ. नीलम वर्मा प्रकाशक : प्रालेक पब्लिशिंग हाउस प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई पृष्ठ : 92 मूल्य : रु. 699.

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