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मिनी जंगल प्लॉट

कहानी
चित्रांकन : संदीप जोशी
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अब इससे क्या कहे कि उन्हें वह ‘मिनी जंगल’ अच्छा नहीं, बहुत अच्छा लगता था। वह पेड़-पौधे उनकी दैनिकी का अहम हिस्सा थे। उस पेड़ की चिड़ियों को दाना-पानी देकर उनकी बूढ़ी अम्मा खुश होती थी। चिड़ियों के शाट और रील बनाकर मोनू सोशल मीडिया में डालता था। उसे भी कई नई चिड़ियाओं के नाम याद हो गये थे। कूड़े का जिक्र तो उसके पति ने यूं ही किसी मीटिंग में कर दिया था। वरना उस झाड़झझांड़ में कूड़ा नजर आता ही कहां था। ऐसे प्यारे जंगली फूल खिलते थे, देखकर मन खुश हो जाता था।

‘अरे यह क्या? मोनू, मोनू देख तो।’ यह कहते शोभा बालकनी से कमरे में लौट आयी।

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‘मोनू तूने देखा क्या? सामने प्लॉट का पेड़ कट गया है। प्लॉट एकदम साफ हो गया है। खाली प्लॉट। तू देख तो सही। पूरे प्लॉट का नक्शा ही बदल गया है।’

‘बड़ पेड़ कट गया?’ कहते-कहते मोनू बाहर बालकनी में आ गया। हैरान वह सामने प्लॉट को देख रहा था। खाली प्लॉट कैसा नंगा, बेरंग लग रहा था।

‘यह प्लॉट कब साफ हो गया? लकड़ियों की ढुलाई भी हो गयी और हमें आहट भी नहीं हुई । है न स्ट्रैन्ज।’ शोभा अपने आप से कह रही थी।

‘रात में मम्मा, कुछ खटखट की आवाज़ मंैने सुनी तो थी पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। सो सैड मम्मा। आजकल इतनी सुंदर माइग्रेटरी बर्ड्स देखने को मिल रही थी।’

मोनू अक्सर शोभा को चिड़ियों के नाम बताता। नाम तो शोभा को याद नहीं रहते लेकिन उनके क्रियाकलाप देखने में उसे भी आनंद आने लगा था। एक डाल से दूसरी डाल पर फुदकती, चहचहाती चिड़ियां उनकी जिंदगी में शामिल हो गयी थीं। तड़के सुबह उनकी चहचहाहट का अलार्म बिस्तर छोड़ने का संकेत था, मानो जब तक बिस्तर से उठे नहीं यह अलार्म बंद नहीं होगा।

शोभा का मन उदास हो उठा। यहां, वहां चहकते, फुदकते यह पक्षीगण कैसे सुन्दर लगते थे। इस हरेभरे गदराये पेड़ की बदौलत रंगबिरंगी, नई-नई चिड़ियां देखने को मिल जाती थीं। एक डाल से दूसरे डाल पर फुदकती कभी केबल तो कभी बिजली के तार पर बैठी तो कभी लॉन में एक पौधे से दूसरे पौधे के इर्द-गिर्द फुदकती वातावरण में एक गति और ऊर्जा का संचार करती बहुत अपनी-सी लगती थी। ‘जंगल में मंगल’ का मुहावरा शोभा ने पढ़ा और सुना जरूर था, पर उसकी एक झलक इस प्लॉट में उग आयी खरपतवार झाड़झंझाड़ से ही देखने को मिली। इसमें उगी करी पत्ते का स्वाद तो कॉलोनी के लगभग सभी घरों की रसोई तक पहुंचता है।

लेकिन अम्मा! इन पक्षियों की दिनचर्या से अम्मा की दिनचर्या जुड़ी हुई थी। पक्षियों को दाना देना, मिट्टी के बर्तन का नियम से पानी बदलना, बर्तन साफ करना, शाम को बरामदे में आराम कुर्सी पर बैठ पक्षियों को देखने, सराहने में उनका अच्छा समय गुजर रहा था। कहते हैं बुढ़ापे में इंसान को हंसते-बोलते रहना चाहिए वरना डिमेंशिया, पार्किन्सन और एल्जाइमर्स जैसी बीमारियां होने का खतरा रहता है। कमरे के अंदर से उनके मंत्रोच्चारण की आवाज़ आ रही थी। इससे पहले कि वह कमरे से बाहर आकर यह बदला हुआ मंजर देखे, शोभा उनसे बचने के लिए कमरे में चली गयी।

शोभा का यह अनुमान कि प्लॉट के मालिक ने मकान बनवाने के लिए प्लाट की सफाई करवाई होगी, गलत निकला। मोनू ने ट्यूशन से घर आते ही शोभा को सूचना दी।

‘मम्मा विवेक बता रहा था कि खाली प्लॉटों में उगे जंगली पेड़ों की कटाई म्यूनिसिपैलिटी ने करवाई है। यह सभी लकड़ियां श्मशान घाट में दी गयी है।’

बिमला काम पर आयी तो उसने बताया।

‘आंटी जी आपके सामने वाला प्लाट गुप्ताजी ने साफ करवाया है। कल शाम जब मैं काम खतम कर घर जा रही थी मैंने गुप्ताजी को यहां खड़े देखा था। साथ में दो आदमी और थे। इलेक्शन में खड़े हो रहे हैं। यहां मीटिंग करवाएंगे।’

‘तुझसे किसने कहा यहां मीटिंग करवाएंगे।’ शोभा ने पूछा। घर के सामने मीटिंग का मतलब घर की शांति गयी।

‘आप देखना बीबीजी गुप्ताजी यहां मीटिंग करवायेंगे जरूर। हमारी गली में आते रहते हैं। कहते रहते हैं मीटिंग में जरूर आना। मीटिंग में अपनी परेशानी डिमांड बताना। तभी तो प्लॉट की सफाई करवायी होगी।’

‘ऐसे ही कुछ भी बोलती है, बिमला तू भी।’ शोभा ने राहत की सांस ली। अगले महीने मोनू के इम्तिहान हैं। गुप्ताजी से कहना पड़ेगा अपनी मीटिंग कहीं और कर ले। कॉलोनी में कई खाली प्लॉट पड़े हैं।

शाम को सैर पर जाते हुए गुप्ताजी मिल गये। बड़े प्रेम और गर्मजोशी से उन्होंने शोभा के पति प्रमोद से हाथ मिलाया। सबकी कुशलक्षेम पूछी। औपचारिकताओं का आदान-प्रदान हुआ। मुख्य मुद्दा तो म्यूनिसिपैलिटी के पार्षद का चुनाव था। एक बार चुनाव जीत गये तो पांच साल राजा बन घूमेंगे। दो-चार इधर-उधर की बातों के बाद मुख्य मुद्दा पर आ गये।

‘भाभी जी मैं घर आऊंगा। आपने ध्यान रखना है।’ शोभा कुछ कहती इससे पहले प्रमोद बोल पड़े, ‘आप निश्चिंत रहिये गुप्ताजी। आपको हमसे कहने की जरूरत नहीं है। आप हमारे पड़ोसी हैं। कभी कोई जरूरत पड़ी तो आपको कष्ट देंगे।’

‘जरूर! यह आपके कहने की नहीं हमारे कहने की बात है।’ इससे पहले कि गुप्ताजी उनसे विदा लेते शोभा ने प्लाट की सफाई का जिक्र कर दिया।

‘अरे भाभीजी वह तो डिफेंस कॉलोनी में खाली प्लॉटों में उगे जंगली पेड़ों की कटाई करने उनकी खास रिक्वेस्ट पर आये थे। बड़े अफसरों की कॉलोनी है इसलिये बुलाने पर आ गये। मुझे पता चला तो मैं बड़ी रिक्वेस्ट कर उन्हें यहां लाया। एक दिन निगम साहब आपने जिक्र किया था आपके घर के सामने खाली प्लॉट में लोग कूड़ा-कचरा फेंक देते हैं। बीमारियों का डर बना रहता है।’ बात खतम कर वह शोभा की ओर देखने लगे, इस उम्मीद से कि वह उनका धन्यवाद करेगी।

‘तुमने इनसे कूड़ा डालने की बात कही?’ शोभा ने गुप्ताजी के जाते ही शिकायती स्वर में प्रमोद से कहा।

‘एक दिन सोसायटी की मीटिंग में आम बातचीत में जिक्र किया था। प्लॉट साफ हो गया, ठीक ही तो है, तुम्हें इससे क्या दिक्कत है।’

‘कुछ नहीं।’ अम्मा रोज चिड़ियों को नियम से दाना-पानी देती हैं, जिसमें उनका अच्छा समय बीत जाता है। उनकी पत्नी, और बेटा हरियाली और पक्षियों को देखकर खुश होते हैं। मोनू माइग्रेटरी बर्ड्स की फोटो खींचकर सोशल मीडिया पर डालता है। अपने पति से वह सब कहती तो उसे पागल समझते। महानगरों में पले-बढ़े प्रमोद जैसे लोग पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों से जुड़ाव का महत्व क्या समझेंगे! हफ्तों हो जाते हैं प्रमोद को अपनी अम्मा से बिना बात किये। यह सब प्रमोद से कहना ‘भैंस के आगे बीन बजाना’ जैसा था। खासतौर से तब जब उस प्लॉट के छोड़े-बड़े सभी पेड़-पौधे कट चुके थे। पक्षीगण अपने नए बसेरों की तलाश में उड़ चुके थे।

प्लॉट की सफाई हुए लगभग एक महीना हो गया था। गुप्ताजी पार्षद का चुनाव जीत गये थे। उनकी कोठी के आगे बड़े अक्षरों में पार्षद, वार्ड नं. 5 की तख्ती टंग गयी थी जो दस कदम दूर से पढ़ी जा सकती थी। अम्मा दिन-प्रतिदिन गुमसुम होती जा रही थी। चिड़ियों के बर्तन का पानी वैसा ही पड़ा रहता। यहां वहां कभी-कभार कोई चिड़िया बगीचे में दिखाई दे जाती। आदतन अम्मा अब भी रोटी के टुकड़े रखना न भूलती जिन्हें कबूतर खा जाते। गंदगी और कर देते। कुछ दिनों से एक बिल्ली आ रही थी। बालकनी में भी शोभा का बैठना अब बहुत कम हो गया था।

उस दिन बाल्कनी में खड़ी शोभा सामने देख रही थी। सामने प्लॉट के आगे एक महिला खड़ी थी। शोभा और उसकी नजरें मिलीं।

‘सुनिये।’ मालूम नहीं क्या बात होगी। बड़े रूखे स्वर में उसने ‘सुनिये’ कहा था।

‘मैं नीचे आती हूं।’ गेट खोलकर शोभा बाहर आयी ही थी कि वह महिला बिना किसी भूमिका के तल्ख स्वर में बोली,

‘यह पेड़ आपने कटवाये हैं? बिना हमारी पर्मिशन के आपने हमारे प्लॉट के पेड़ कैसे कटवा दिये?’

‘पेड़ हमने कटवाये? यह आपसे किसने कहा? हम क्यों किसी के प्लॉट के पेड़ कटवाएंगे।’ शोभा हैरत में थी।

‘गुप्ताजी कह रहे थे आपको इस प्लॉट के पेड़-पौधों से परेशानी थी। जाड़ों में आपकी धूप रुकती थी। लोग कूड़ा फेंक देते थे। वगैरह-वगैरह।’

‘कुछ अपने दिमाग से भी तो सोचिए मैडम। आपके प्लॉट और हमारे घर के बीच में बीस फुट की सड़क है। बाउंडरी वॉल से बीस फुट जगह छोड़ने के बाद हमारा मकान बना है। पेड़ की छाया हमारे मकान तक कैसे पहुंचती रही होगी आप खुद सोचिये।’

‘यही मैं भी सोच रही थी।’ महिला का स्वर अब धीमा पड़ गया था। ‘लेकिन गुप्ताजी ने कहा पेड़ कटाने के लिए आपका उन पर बड़ा प्रैशर था।’

‘प्रैशर।’ शोभा का सिर भन्ना रहा था। अब इससे क्या कहे कि उन्हें वह ‘मिनी जंगल’ अच्छा नहीं, बहुत अच्छा लगता था। वह पेड़-पौधे उनकी दैनिकी का अहम हिस्सा थे। उस पेड़ की चिड़ियों को दाना-पानी देकर उनकी बूढ़ी अम्मा खुश होती थी। चिड़ियों के शाट और रील बनाकर मोनू सोशल मीडिया में डालता था। उसे भी कई नई चिड़ियाओं के नाम याद हो गये थे। कूड़े का जिक्र तो उसके पति ने यूं ही किसी मीटिंग में कर दिया था। वरना उस झाड़झझांड़ में कूड़ा नजर आता ही कहां था। ऐसे प्यारे जंगली फूल खिलते थे, देखकर मन खुश हो जाता था। शोभा के किचन गार्डन में लगी गिलोय की बेल माली इसी प्लॉट से लाया था।

‘अच्छा होगा कि आप जाकर गुप्ताजी से पूछिये। हमारा इसकी कटाई-सफाई से कोई लेना-देना नहीं है।’ और उसने गेट बंद कर दिया। इलेक्शन जीतने के बाद एक बार शिष्टाचारवश धन्यवाद देने तक तो आये नहीं। बेकार की तोहमत जरूर लगा दी। और उनके जवाब की प्रतीक्षा किये बिना वह घर की ओर मुड़ गयी। तब तक मोनू भी बाहर बरामदे में आ गया था।

‘वह आंटी क्या कह रही थी मम्मा?’

‘कह क्या रही थी। गुप्ताजी ने उनसे कहा कि पेड़ कटवाने के लिए हमारा प्रैशर था।’

‘आगे-आगे देखो, मम्मा होता है क्या?’ मोनू मुस्कुरा रहा था।

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