प्रद्युम्न भल्ला
हरियाणा की लेखिका सुश्री अर्चना कोचर के प्रथम लघुकथा संग्रह ‘कल्पना के पंख’ में उनकी 82 लघुकथाएं संगृहीत हैं। लघुकथा विधा के हिंदी साहित्य में स्थापित होने का एक संघर्षमय इतिहास रहा है।
इस विधा पर जहां पूरे देश के लेखकों ने अपनी लेखनी चलाई है वहीं हरियाणा में भी बहुत से लेखकों ने लघुकथा संग्रह दिए हैं, जिनमें अर्चना कोचर का नाम भी शामिल है। वे स्वयं भूमिका में लिखती हैं, ‘कल्पना के पंख की उड़ान धरती माता से शुरू होती हुई रास्ते में नदी, नाले, तालाब, पेड़, सागर से गुजरती हुई प्रकृति की हसीन वादियों में स्वच्छंद विचरण के साथ भ्रष्टाचार, आतंकवाद में सहनशक्ति का इम्तिहान देते हुए सीमा पर जवान, खेतों में किसान की बलिदानी और कुर्बानी की गाथा गाते हुए संवेदनाओं से लहूलुहान माता के नए वात्सल्य, त्याग, अर्पण, समर्पण में राजनीति के गलियारों में राजा-प्रजा, नेता-अभिनेता के अधिकारों, कर्तव्यों, रीतियों, कुरीतियों से तर्क-वितर्क करती हुई फिर से धरती पर आकर मां-बाप, भाई-बहन के रिश्ते में रम जाती हैं।’
संग्रह की अधिकतर लघुकथाओं की विषय वस्तु यही है जो वर्तमान में समाज में देखने में आ रहा है। अर्चना कोचर की लघुकथाएं सरल, सहज भाषा में हैं जो प्रत्येक पाठक आसानी से आत्मसात कर सकता है। उनमें कहीं भी बोझिलता नहीं है।
अर्चना की लघुकथाएं समाज को एक दिशा देने में सक्षम हैं व उन कुरीतियों को भी उखाड़ फेंकने को प्रतिबद्ध हैं। यथा लघुकथा ‘कंजक भवानी’ में यह पंक्तियां काबिलेगौर हैं– ‘वह एकदम हैरानी से नाक चढ़ा कर बोली, हाय! इतनी गंदी बच्चियां, तुमने इनके पैर कैसे धोए और कैसे माथा टेका होगा।’ यह इस तरफ संकेत करती है कि हमारी सोच अभी भी बदली नहीं है। इसी प्रकार उनकी लघुकथा ‘दरियादिली’ व्यक्ति के दोहरेपन का पर्दाफाश करती है।
उनकी लघुकथाओं में विरोधाभास भी चमकते हैं और कहीं-कहीं अस्पष्टता भी है। लघुकथाएं समाज में व्याप्त कुरीतियों पर प्रहार करने में सक्षम हैं और व्यक्ति के हृदय पर चोट करने में भी सफल हैं। ‘दुआओं का उपहार’ लघुकथा में नेकी का कार्य किस प्रकार भीतर तक व्यक्ति को आनंद से भर देता है इसका चित्रण सुंदर रूप से हुआ है। ‘अस्पताल से विदा होते दोस्त आपस में गले मिल रहे हैं कि इतनी खुशी की अनुभूति तो हमें होटल में दिवाली मनाने पर भी नहीं होती जितनी आज दुआओं के उपहार के पश्चात हो रही है।’ अर्चना की लघुकथाएं सुंदर रूप से सकारात्मक दिशा में बढ़ती हैं।
कुल मिलाकर अर्चना कोचर की लघुकथाएं भावों की विविधता लिए हुए सुंदर संदेश देने में एवं समाज में व्याप्त कुरीतियों को कुछ हद तक कुरेदने में सक्षम हैं मगर लघुकथा विधा की गहराई, ज्यादा तीखापन और धारदार लघुकथाओं के लिए उन्हें अभी इस विधा पर और श्रम करने की जरूरत है।
पुस्तक : कल्पना के पंख लेखिका : अर्चना कोचर प्रकाशक : समदर्शी प्रकाशन, उ.प्र. पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 150.