सुभाष रस्तोगी
डॉ. महेश चन्द्र शर्मा गौतम संस्कृत के विद्वान तथा हिंदी के सुपरिचित साहित्यकार के रूप में माने जाते हैं। लेकिन संस्कृत तो एक तरह से उनका ओढ़ना-बिछौना है। यही कारण है कि संस्कृत का यही भाषा संस्कार उनकी हिंदी में प्रकाशित कृतियों में अलग से दिखाई देता है।
‘अधूरा आदमी’, ‘बिखरते रिश्ते’ तथा ‘दिग्भ्रान्त मन’ के बाद डॉ. गौतम का सद्य: प्रकाशित उपन्यास ‘क्षितिज की तलाश’ भी उनके पूर्ववर्ती उपन्यासों की तरह नारी विमर्श पर ही केंद्रित है। लेखक का मानना है कि हर मनुष्य का अपना एक क्षितिज होता है। लेकिन बहुत कम व्यक्ति ऐसे होते हैं जो विपरीत परिस्थितियों में रहते हुए भी वक्त की धारा को अपने पक्ष में मोड़ पाते हैं। ‘क्षितिज की तलाश’ का नायक गजेंद्र भी एक ऐसा व्यक्ति है, जिसे राजनीति में अपने क्षितिज की तलाश है। लेकिन निम्न मध्य वर्ग से सम्बद्ध गजेंद्र के लिए यह कभी संभव नहीं हो पाता, यदि वह समाज के एक उच्च धनाढ्य वर्ग की अपनी सहपाठी वसुधा के संपर्क सान्निध्य में नहीं आता। दरअसल गजेंद्र और वसुधा एक-दूसरे के पूरक हैं और गजेंद्र के सपनों की उड़ान के नेपथ्य में प्रेरणा वसुधा ही है।
गजेंद्र कमाल का वक्ता है और राजनीति में अपना क्षितिज प्राप्त करने के पीछे उसका मकसद समाज की आखिरी पंक्ति के आदमी को जीवन की मुख्यधारा में लाकर खड़ा करना है। विवाह के बाद गजेंद्र और वसुधा किसी ऐसे गांव में जाकर रहना चाहते हैं, जहां जीवन की बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध न हों। इसी सत्य को उजागर करती यहां यह पंक्तियां काबिलेगौर हैं ‘विशालकाय बंगले, शीशे की तरह दमकती सड़कें, बड़ी-बड़ी आलीशान इमारतें और जादुई मॉल, इन सब में यद्यपि वह वर्ग नहीं दिखाई देता तथापि यथार्थ यह है कि इन लोगों द्वारा ही बनाये गये सबके रखरखाव की भी जिम्मेवारी इन्हीं की होती है।’
लेकिन गजेंद्र और वसुधा जो राजनीति में अपने-अपने क्षितिज को प्राप्त करने में सफल होते हैं, उसके नेपथ्य में वसुधा के पिता बद्रीप्रसाद व वसुधा की मां निर्मला देवी की एक महत्वपूर्ण भूमिका भी स्पष्ट दिखाई देती है। यह कहना यहां असंगत प्रतीत नहीं होता कि गजेंद्र केंद्र में लॉ मिनिस्टर और वसुधा अपने गृह राज्य में मंत्री कभी न बन पाती, यदि वसुधा के पिता और मां दोनों ही उनके हमकदम बनकर साथ न चलते। फिर भी वसुधा के पिता बद्रीप्रसाद और मां का एक हजार वर्ग गज के प्लॉट पर सब सुविधाओं से घर बनाकर और उसका नामकरण भी गजेंद्र के माता और पिता के नाम पर करके उन्हें सौंपना वास्तविक जीवन में बहुत संभव तो प्रतीत नहीं होता, अलबत्ता यह भी सही है कि कि कभी-कभी संयोग भी घटते ही है। सो यह संयोग ही सही।
बहरहाल डॉ. महेश चन्द्र शर्मा का यह सद्य: प्रकाशित चौथा उपन्यास ‘क्षितिज की तलाश’ एक आदर्शोन्मुखी उपन्यास का सार्थक रूपक रचता प्रतीत होता है। भाषा संस्कृतधर्मा है और यह इस उपन्यास को निजता प्रदान करती है।
पुस्तक : क्षितिज की तलाश लेखक : डॉ. महेश चन्द्र शर्मा गौतम प्रकाशक : निर्मल पब्लिकेशंस, दिल्ली पृष्ठ : 189 मूल्य : रु. 500.