बाल दासता के खिलाफ मशाल बनी दियासलाई
देश-दुनिया के एक बड़े तबके को कैलाश सत्यार्थी के बारे में ज़्यादा तब पता चला, जब उन्हें बाल अधिकारों व बाल दासता मुहिम हेतु प्रसिद्ध नोबेल शांति पुरस्कार मिला। जिस पुरस्कार के लिए वैश्विक महाशक्ति कहे जाने वाले देश के मुखिया तमाम छल-प्रपंच रच रहे हैं, उसे सत्यार्थी जी ने दशकों की साधना से खामोशी से हासिल कर लिया। निस्संदेह, यह अविराम संघर्ष की कहानी है—कैलाश सत्यार्थी का जीवन।
दशकों पहले बच्चों को बालदासता से मुक्त कराने पर उन पर हमला हुआ था; उनके घायल होने के समाचार, समाचार पत्रों के मुखपृष्ठों पर थे। हाल में आई सत्यार्थी की आत्मकथा का शीर्षक ‘दियासलाई’ उनके संघर्ष और अंधेरी ज़िंदगियों में रोशनी जलाने के ऋषिकर्म को सार्थक करता है। विदिशा में बिताए बचपन में, बिना बिजली वाले घर में पढ़ने के लिए लालटेन जलाते वक्त प्रयुक्त दियासलाई प्रेरणा का प्रतीक बनी— दियासलाई, जो खुद जलकर प्रकाशपुंजों के ज़रिए अंधकार के खिलाफ संघर्ष का मार्ग प्रशस्त करती है। उसमें रोशनी का समुद्र बनाने की क्षमता होती है।
कैलाश सत्यार्थी ने अपनी अन्त:चेतना की इस अग्नि से हज़ारों बच्चों को बाल दासता से मुक्त करके प्रकाशपुंज बना दिया। सही मायनों में, उनका विश्व-चर्चित ‘ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ एक ऐसा ही रोशनी का सैलाब था, जिसमें उन्होंने 186 देशों के बाल-मन की पुकार सुनी। उन्होंने आज़ादी की रोशनी से अवगत कराया।
कुल पच्चीस शीर्षकों में बंटी आत्मकथा की शुरुआत ‘ओस्लो के मंच से पीछे झांकते हुए’ शीर्षक से होती है, जहां वे नार्वे की राजधानी ओस्लो की रक्त जमाती सर्दी में विश्व शांति पुरस्कार मंच के निकट अपनी संघर्ष-यात्रा को याद करते हैं। फिर वे आत्मकथा में ‘जीवनभर का पाठ’, ‘बड़े सपने देखता छोटे शहर का लड़का’, ‘ये इश्क नहीं आसां’, ‘दिल्ली का संघर्ष’, ‘आंदोलन के शहीद’, ‘जाको राखे साइयां मार सके न कोय’, ‘पुलिस लॉकअप में गुजारी रात...’, ‘आश्रमों की स्थापना’, ‘और कारवां बनता गया’, ‘80 हजार किलोमीटर का मार्च’, ‘शिक्षा के लिए आंदोलन’, ‘मां छोड़ गई करुणा पथ पर’, ‘भुवन, असमिता और सकर्स’, ‘पुराने कानून की सीमा और नए की सफल लड़ाई’, ‘विदेशी संस्थाओं के सहयोग–असहयोग’, ‘करुणामय समाज के प्रयोग’, ‘पुरस्कार–प्रसिद्धि और खट्टे-मीठे अनुभव’ आदि शीर्षकों के ज़रिए समृद्ध आत्मकथा को पाठकों तक पहुंचाते हैं।
निस्संदेह, कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा ‘दियासलाई’ एक प्रेरक दस्तावेज़ है।
पुस्तक : दियासलाई आत्मकथा : कैलाश सत्यार्थी प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 383 मूल्य : रु. 599.