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घाघ चेहरों से उतरते मुखौटे

पुस्तक समीक्षा
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तेजिंद्र

महिला कहानीकार, उपन्यासकार पुष्पा देवड़ा की नवीनतम प्रकाशित कृति है ‘मुखौटे’। यह कृति एक उपन्यास है। यद्यपि लेखिका ने पुस्तक में इसका उल्लेख नहीं किया है। यह उपन्यास एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो अपना बनकर लोगों को ठगता है, छलता है। उपन्यास में विक्रम नाम का व्यक्ति लेखक दम्पति शशांक और रश्मि को अपना बनाकर उन्हें ठगता रहता है। हर पल उनसे कुछ न कुछ हथियाने की कोशिश में रहता है। वह जब तक किरायेदार के रूप में शशांक और रश्मि के पास रहता है, उन्हें परेशान करता रहता है। विक्रम के बारे में रश्मि की राय है : ‘विक्रम के भोले लगते चेहरे के पीछे मानो किसी माफ़िया का चेहरा छुपा हो।’

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उपन्यास में बत्रा, शर्मा, विनय और गोपी भी उसका शिकार बनते हैं। उपन्यास में विक्रम की मां, भाई और विनोद भी पूरे घाघ हैं। उपन्यास में अर्पिता और प्रेरणा नारी-सशक्तीकरण और सकारात्मक सोच का प्रतिनिधित्व करती हैं, अंत दु:खांत है और पृष्ठ-भूमि दूरदर्शन के ज़माने की है।

प्रभावशाली लेखन-शैली, रोचकता, दृश्यात्मकता, सहज चरित्र-चित्रण, स्वाभाविक संवादों के बल पर उपन्यास पाठकों को बांधे रखता है। उपन्यास में उर्दू के शब्दों में जहां नुक्ते होने चाहिए, नहीं हैं। उपन्यास में घाघ चेहरों से मुखौटे उतारे गये हैं।

पुस्तक : मुखौटे लेखिका : पुष्पा देवड़ा प्रकाशक : साहित्यागार प्रकाशन, जयपुर पृष्ठ : 135 मूल्य : रु. 250.

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