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संस्कारों में श्रेष्ठ लेखन का मंत्र

पुस्तक समीक्षा
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कमलेश भारतीय

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पंजाब के कथाकार सैली बलजीत की रचना ‘स्मृतियों के तलघर’ संस्मरणों की तीसरी पुस्तक है। सैली बलजीत की रुचि का क्षेत्र है संस्मरण लिखना, और इन्हें पढ़ने के बाद इन संस्मरणों में न केवल सुखद स्मृतियां बल्कि इनके कथाकार के दर्शन भी होते हैं। ये किसी भी रचनाकार द्वारा लिखे गये रेखाचित्रों जैसे भी हैं। सैली बलजीत का कहना है कि संस्मरणों के बहाने अपने अग्रजों, मित्रों और बहुत अपने करीब लोगों को स्मरण करना है लेकिन इसी बहाने अपनी संघर्ष यात्रा का परिचय भी जगह-जगह देते जाते हैं। पंजाब के हिंदी लेखक को किन-किन संकटों से जूझ कर साहित्यिक क्षेत्र में अपनी जगह बनानी पड़ती है, इसका उल्लेख भी कहीं न कहीं आ जाता है। पुस्तक में जहां देश के बड़े रचनाकारों के संस्मरण हैं वहीं अपने दो भाइयों देवेंद्र कुमार और अश्विनी कुमार के संस्मरण भी हैं।

जहां तक संस्मरणों की बात है तो कमलेश्वर, महीप सिंह, गोपालदास नीरज, सुदर्शन फाकिर, रमेश बतरा, सतीश बस्सी, विजय बटालवी, छत्रपाल, उमाशंकर तिवारी, सरोज वाशिष्ठ जैसे दस व्यक्तित्वों पर केंद्रित हैं।

इन संस्मरणों में जगह-जगह सैली के कथाकार ने भी अपने रंग दिखाये हैं और अनेक स्थानों के खूबसूरत वर्णन किये हैं। सरोज वाशिष्ठ का आकाशवाणी से लेकर किरण बेदी के तिहाड़ जेल में बंदियों के साथ विशिष्ट कार्य और अंतिम दुखद मृत्यु तक का वर्णन मार्मिक है तो उमाशंकर तिवारी जैसे पाठक बड़े सौभाग्य की बात। सतीश बस्सी का सारा काम अलमारियों में बंद रह जाना दुखद है।

ये संस्मरण नये रचनाकारों को संघर्ष करने और श्रेष्ठ लिखने का मंत्र दे रहे हैं।

पुस्तक : स्मृतियों के तलघर रचनाकार : सैली बलजीत प्रकाशक : रश्मि प्रकाशन, लखनऊ पृष्ठ : 136 मूल्य : रु. 225.

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