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असहज रिश्तों के महाभारती रूपक

सुभाष रस्तोगी लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार प्रो. अमृतलाल मदान साहित्य की कमोबेश सभी विधाओं में साधिकार सृजनरत साहित्यकारों में अग्रगण्य हैं। उनकी अब तक कुल 66 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्ल्ड सोशल फोरम कराची, इथोपिया, मॉरीशस के साहि‌त्य मंचों पर काव्य-पाठ और...
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सुभाष रस्तोगी

लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार प्रो. अमृतलाल मदान साहित्य की कमोबेश सभी विधाओं में साधिकार सृजनरत साहित्यकारों में अग्रगण्य हैं। उनकी अब तक कुल 66 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्ल्ड सोशल फोरम कराची, इथोपिया, मॉरीशस के साहि‌त्य मंचों पर काव्य-पाठ और इथोपिया में अध्यापन भी उनके खाते में शामिल है।

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प्रो. अमृतलाल मदान ‌के सद्यः प्रकाशित उपन्यास ‘छठा पांडव’ पति और पत्नी के बीच पूर्व प्रेयसी की अयाचित उपस्थिति से उत्पन्न झंझावातों पर केंद्रित है जो अन्ततः उनके गृहस्थ की सुख-शांति को नष्ट कर देती है। लेखक की यह पंक्तियां इसके साक्ष्य के रूप में काबिलेगौर हैं, ‘बार-बार यह लगा कि उम्र के इस आखिरी पड़ाव पर ‌आकर ईमानदार अभिव्यक्ति से कैसा समझौता करना, •क्यों न जीवन के विशद‌ महाभारत का एक अत्यंत लघु अंश ऐसा ही प्रस्तुत करूं जैसा कि वह है- मनुष्य मन की रहस्यमयी तिलस्मी शक्तियों का खेला, विभिन्न अंतर्द्वंद्वों का मेला और फिर धरती-आकाश के विशाल दो पाटों के बीच पिसता-घिसता, रिसता रहता बेचारा हर इंसान अकेला।’

सागर सुषमा (सुषी) को घर पर ट्यूशन पढ़ाने आता है। है तो सागर सुषी का अध्यापक लेकिन वे ऐसे प्रेमपाश में जकड़ जाते हैं कि बाद में सागर की पत्नी सरिता और प्रकाश की पत्नी सुषी का विवाहित जीवन नरक बन जाता है। एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत एक दिन सेवानिवृत्त सैन्य कर्मी राठौड़ का फोन सागर के पास एक डायरी देने के लिए आता है। वह डायरी अर्ध सैन्यकर्मी प्रकाश की है। इस डायरी में प्रकाश ने अपनी पत्नी सुषी और सागर के प्रेम-संबंधों की कथा सिलसिलेवार दर्ज की है कि प्रकाश के सुषी से विवाह के बाद भी सागर जब-तब किसी न किसी बहाने से सुषी से मिलने क्वार्टर पर आ धमकता है। ऐसी स्थिति में प्रकाश के मन पर क्या बीतती होगी, इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है।

इस प्रेम कहानी का पटाक्षेप होता है प्रकाश की आत्महत्या से। वह सियाचीन जैसे ग्रेव-यार्ड में स्वयं के लिए बर्फ की कब्र चुन लेता है। राठौड़ अंत में प्रकाश को आवेश में बताता है, ‘छठा पांडव था वह हम सौ कौरवों के बीच... महायुद्ध के बाद भी लड़ता हुआ... और हारता हुआ।

सागर की अंत में यह स्वीकारोक्ति कि, ‘मैं स्वीकार करता हूं कि प्रकाश को मैंने मारा है, एक सौ एकवें कौरव ने...।’ महाभारत के इस रूपक का प्रो. अमृतलाल मदान के इस उपन्यास ‘छठा पांडव’ में सफल निर्वहन हुआ है और उनके नाटककार की निरंतर दखल ने पूरे परिदृश्य को रंग-संकेतों से जैसे जीवंत कर दिया है।

पुस्तक : छठा पांडव (उपन्यास) लेखक : प्रो. अमृतलाल मदान प्रकाशक : अद्विक प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 104 मूल्य : रु. 160.

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