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अंधेरे में झिलमिलाता प्रेम प्रकाश

पुस्तक समीक्षा
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उपन्यास की शुरुआत में जो डिस्क्लेमर है, वह हमारे समाज की सच्चाई पर सीधा कटाक्ष है। असम के गुवाहाटी पृष्ठभूमि पर आधारित यह प्रेम कहानी, प्रेम के पीछे फैले गहरे अंधेरे पर रोशनी डालने का प्रयास करती है। लेखक का कटाक्ष है कि देश में ऐसा कोई भी शहर नहीं है जहां दंगे नहीं हुए हों, सब जगह शांति है— यह सत्य नहीं है। उस अंधेरे में खड़ा इंसान झकझोर जाता है, जो जाति, क्षेत्रवाद, नस्ल, भाषा की पट्टी बांधे प्रेम की रोशनी को देख नहीं पाता।

कहानी की शुरुआत बारिश से होती है। एक लड़का और एक लड़की पहली बार मिलते हैं, और यहीं से शुरू होती है एक प्रेम कहानी, जिसका आधार वे भावनाएं हैं जिन्हें समाज कुचल देता है। बिहारी हिंदी भाषी मनोज और असमिया अनुभा की पहली मुलाकात अजीब थी, लेकिन उनकी यह कहानी अजीब नहीं है। ‘साला बिहारी’ शब्द उसकी पहचान बन चुका था। प्रेम की शुरुआत में इस शब्द की विशेष भूमिका थी। हल्की-फुल्की तकरार से शुरू हुई यह प्रेम कहानी बारिश में भीगते हुए आगे बढ़ती है। लेकिन धीरे-धीरे कहानी में अंधेरा फैलने लगता है...

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क्रिस्टोफर जैसे आतंकवादी, उल्फा, एनडीएफबी, असम स्टूडेंट की रैली, बाहरी लोगों पर रोक, परप्रांतियों के लिए जहर उगलना, उन्हें गोलियों से उड़ा देना आदि घटनाएं उस अंधेरे की साक्षी हैं जो सब कुछ निगलना चाहता था। असमिया और हिंदी के बीच का संघर्ष बहुत कुछ लील रहा था। देका बाबू, कंदली बाबू, साधन, बिरेन, मनिक, बटुक, मिस ब्रगिज, रामदाहीन, सिताप्ती, क्रिस्टोफर टेररिस्ट, सुमिज्वेल भट्टाचार्य आदि अनेक पात्र इस कहानी को उजाले से अंधेरे की ओर ले जाते हैं। भाषा, क्षेत्रवाद, जाति, धर्म इस देश को खोखला कर रहे हैं, प्रेम के हर उस प्रतीक को मिटा रहे हैं जिनसे इंसानियत का नाता जुड़ा है। राजनीतिक तंत्र ऐसे अंधेरों को पनपने दे रहा है, जो बहुत दुखद बात है।

कथ्य से अलग, इस उपन्यास की भाषा की बुनावट बहुत शानदार है। परिस्थितियों का वर्णन शब्दों के माध्यम से बेहद असरदार है। प्रकृति के माध्यम से जो फ्रेम उन्होंने बनाए हैं, वे बहुत सुंदर हैं।

पुस्तक : रोमियो जूलियट और अंधेरा लेखक : कुणाल सिंह प्रकाशक : लोक भारती, नयी दिल्ली पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 250.

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