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नदियों की फिक्र का तार्किक जिक्र

पुस्तक समीक्षा
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विवेक शर्मा

पंकज चतुर्वेदी की पुस्तक ‘मझधार में धार’ भारतीय नदियों की बिगड़ती स्थिति और उनके संरक्षण की दिशा में उठाए जाने वाले कदमों पर गहन विमर्श प्रस्तुत करती है। पुस्तक समाधान की राह दिखाती है, नदियों को बचाने और उनके प्रति जागरूकता लाने का आह्वान करती है।

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लेखक ने नदियों के पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक महत्व को व्यापक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। गंगा, यमुना, गोमती और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों पर लिखे गए अध्यायों में उनके बिगड़ते हालात का वैज्ञानिक और सांस्कृतिक विश्लेषण मिलता है। उदाहरण के तौर पर, गंगा के किनारे बसे ‘कैंसर गांवों’ की स्थिति को उन्होंने बड़े ही संवेदनशील और तथ्यात्मक तरीके से पेश किया है।

पुस्तक के कुछ विशेष अध्याय, जैसे ‘यमुना : वादों की नहीं, इरादों की दरकार’ और ‘हिंडन-यमुना : एक उपेक्षित, नीरस संगम’, नदियों की दुर्दशा और सरकार व समाज की निष्क्रियता को बेबाकी से उजागर करते हैं। वहीं, ‘नून नदी कैसे नूर नाला बनी’ पाठकों को सोचने पर विवश करता है कि आखिर नदियों को उनकी प्राकृतिक अवस्था में लौटाने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जा सकते हैं।

पुस्तक में सामुदायिक भागीदारी, कड़े कानून और प्रदूषण नियंत्रण जैसे उपायों पर जोर दिया गया है। लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि नदियों का संरक्षण केवल सरकारी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक सामाजिक, सनातन संस्कृति और व्यक्तिगत कर्तव्य भी है। हालांकि, पुस्तक में नदियों के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व को अधिक गहराई से प्रस्तुत किया जा सकता था। यह पहलू पाठकों को नदियों से भावनात्मक रूप से जोड़ने में अधिक प्रभावी हो सकता था।

मझधार में धार नदियों के संरक्षण के प्रति एक प्रभावशाली और प्रेरक दस्तावेज है। यह पाठकों को न केवल जागरूक करती है, बल्कि उनके भीतर नदियों को बचाने का जज्बा भी पैदा करती है।

पुस्तक : मझधार में धार लेखक : पंकज चतुर्वेदी प्रकाशक : प्रवासी प्रेम पब्लिशिंग, भारत, साहिबाबाद पृष्ठ : 168 मूल्य : रु. 230.

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