मनमोहन गुप्ता मोनी
लघुकथा के क्षेत्र में अशोक भाटिया का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनकी पुस्तक ‘अंधेरे में आंख’ एक ऐसा दस्तावेज है, जिसमें जीवन के हर रंग देखने को मिल जाते हैं। इन लघुकथाओं में आसपास बिखरी बातें व विचार सहज ही दिखाई देते हैं।
अशोक भाटिया की लघुकथाओं की खासियत यह है कि बहुत ही सहज शब्दों में यह अपनी बात कहने का दम रखते हैं। लघुकथा लेखन के लिए लेखक की पैनी दृष्टि का होना बहुत जरूरी है। छोटी से छोटी बात कम से कम शब्दों में बड़ी सहजता से कहने का दूसरा नाम ही लघुकथा है। पुराने संदर्भ को आज के वातावरण के अनुसार ढालकर जब लघुकथा लिखी जाती है तो उसका आनंद ही अलग होता है। ऐसी ही एक लघुकथा ‘बेताल की नई कहानी’ में लेखक ने स्पष्ट किया है।
लेखक अति संवेदनशील होता है। संवेदना तो कुछ लम्हों के प्रति, क्रियाकलाप के प्रति भी हो सकती है और कार्यप्रणाली के साथ भी हो सकती है। अशोक भाटिया की लघुकथा ‘रिश्ते’ में भी ऐसा ही दिखाई देता है, जब बस का ड्राइवर यह कहता है कि मैं इस रास्ते से एक लम्बे अरसे से जुड़ा हूं। इस रूट से मेरा 30 सालों का रिश्ता है। आज अंतिम दिन है इस रूट पर चलने का। मुकाम तक पहुंचते-पहुंचते मैं रिटायर हो जाऊंगा। यह बात उस संवेदनशील व्यक्ति के लिए काफी होगी जो उसकी मन:स्थिति को जानता होगा। गम्भीर विचारों से लिपटा यह गुलदस्ता पठनीय है।
पुस्तक : अंधेरे में आंख लेखक : अशोक भाटिया प्रकाशक : हिंदी साहित्य निकेतन, बिजनौर, उ.प्र. पृष्ठ : 136 मूल्य : रु. 150.