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व्यंग्य से टकराती राजनीति की परतें

पुस्तक समीक्षा
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हिंदी के प्रतिष्ठित व्यंग्यकार विष्णु नागर की तीन दशकों से अधिक समय में लिखी गई व्यंग्य रचनाओं की नौ पुस्तकों में से चुनी गई 75 श्रेष्ठतम व्यंग्य रचनाओं का संकलन ‘आदमी की पूंछ’ हाल ही में चर्चा में आया है।

अपनी भूमिका में नागर ने लिखा है, ‘इस पुस्तक में राष्ट्रीय जीवन के विविध पक्ष हैं और इनके पीछे की जीवन दृष्टि साफ़ नज़र आती है। आज राजनीतिक विद्रूप इतना प्रखर है, जितना आज़ादी के बाद कभी नहीं था। इस दृष्टि से व्यंग्य लेखन के लिए स्थितियां आज अधिक अनुकूल हैं। इस समय के शासक व्यंग्य की ताक़त से काफी डरे हुए हैं।’

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नागर ने एकदम मौलिक और गंभीर विषयों—जो पढ़ने में रोचक, गहरे और स्थायी महत्व के हैं—को अपने लेखन का केंद्र बिंदु बनाया है। उन्होंने अधिक ध्यान राजनीतिक लेखन पर दिया है। नागर लिखते हैं, ‘जीवन के सभी पक्षों पर आज घटिया राजनीति बहुत अधिक हावी हो चुकी है। विषाक्त राजनीति ने सब कुछ को इस समय लील लिया है। ऐसे समय में राजनीति ही व्यंग्य का आधार बने, यह सहज है।’

‘शीर्षक-प्रधान रचना’ में नागर ने आदमी को बंदर की औलाद और चिंपांज़ी को प्रागैतिहासिक नानी मानते हुए लिखा है कि ’अगर हम पूंछवान मनुष्य होते तो क्या होता?’ पूंछ की उपयोगिता का वृहद वर्णन करते हुए लेखक ने अनंत संभावनाएं तलाशी हैं।

‘शहीद रज्जब’ में ’लाश की राजनीति’ पर कटाक्ष है। ‘स्वर्ग-प्रयाण की राजनीति’ में प्रधानमंत्री ने स्वयं की मृत्यु के पश्चात प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर मरने के स्पष्टीकरण दिए हैं, और विपक्ष का यह कहना कि प्रधानमंत्री की हृदयगति रुकने से मृत्यु वास्तव में एक पूर्वनियोजित षड्यंत्र है—यह व्यंग्य अत्यंत रोचक और सशक्त है।

‘राष्ट्रीय नाक’ आलेख में सत्ता प्रमुख अपनी नाक न बहने और उसे ‘सुड़-सुड़’ कर अंदर रखने पर जो जवाब एक पत्रकार को देते हैं, वह किसी सामान्य लेखन में नहीं मिल सकता। शासक की नाक, व्यक्तिगत होकर भी राष्ट्र की संपत्ति है—जो इस समय ‘राष्ट्रीय नाक’ है।

अन्य आलेखों में— ‘सरकार इसलिए सो रही थी’, ‘जो है भरपेट है’, ‘दूसरा महात्मा गांधी’, ‘हिंदू राष्ट्र’, ‘हमारी पुलिस महान है’, ‘कव्वे और आदमी’, ‘बनना गधे का घोड़ा’, ‘ठंड में नहाना’, ‘बाप का सीना’, ‘संपादक की आवश्यकता है’, ‘मेरी रीढ़ की हड्डी गुम है’, ‘टाइपराइटर’, ‘नेता-पत्रकार संवाद’, ‘प्रधानमंत्री की छींक’, ‘गांधी और गोडसे’ — ऐसी सभी व्यंग्य रचनाएं हैं, जो नागर ने लीक से हटकर हिंदी साहित्य में स्थापित की हैं।

पुस्तक : आदमी की पूंछ (व्यंग्य संकलन) व्यंग्यकार : विष्णु नागर प्रकाशक : राजपाल एण्ड सन्ज, नयी दिल्ली पृष्ठ : 204 मूल्य : रु. 375.

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