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जेएलएफ में नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा 'दियासलाई' का लोकार्पण

बच्चों के अधिकारों की लड़ाई की प्रेरक गाथा
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ट्रिब्यून न्यूज सर्विस

चंडीगढ़ , 30 जनवरी

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जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) के मंच पर नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा 'दियासलाई' का लोकार्पण हुआ। यह आत्मकथा उनकी जीवन यात्रा, संघर्ष और बच्चों को शोषण से मुक्त कराने के उनके अभियान की प्रेरक कहानी बयां करती है।

'दियासलाई' के 24 अध्यायों में सत्यार्थी ने विदिशा के एक साधारण पुलिस कांस्टेबल के परिवार में जन्म लेने से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान और नोबेल शांति पुरस्कार तक की अपनी यात्रा को लिखा है। पुस्तक चर्चा के दौरान सत्यार्थी ने बताया कि कैसे उन्होंने सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ा और अपने जातीय उपनाम 'शर्मा' को हटाकर 'सत्यार्थी' रख लिया, जिसका अर्थ है "सत्य का रक्षक"।

सत्यार्थी ने चर्चा के दौरान कहा, "नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद मुझसे पूछा गया कि एक या दो वाक्यों में बताएं कि आपने जीवन में क्या हासिल किया? मैंने जवाब दिया कि मेरा सबसे विनम्र योगदान यह है कि मैंने सबसे उपेक्षित और गुमनाम बच्चों की आवाज़ को बुलंद किया। अब कोई भी सरकार उन्हें अनदेखा नहीं कर सकती।"

"हर व्यक्ति के भीतर बदलाव की चिंगारी"

पुस्तक में सत्यार्थी लिखते हैं, "अंधेरे का अंत हमेशा किसी छोटी सी चिंगारी से होता है। जैसे माचिस की एक तीली सदियों के घने अंधेरे को चीरकर रोशनी फैला सकती है, वैसे ही हर व्यक्ति के भीतर दुनिया को बेहतर बनाने की अपार संभावनाएं छुपी होती हैं। जरूरत है उन्हें पहचानने और रोशन करने की।"

बाल श्रम से मुक्त हुए बच्चों के हाथों लोकार्पण

सत्यार्थी ने आत्मकथा को अपने माता-पिता और उन तीन साथियों को समर्पित किया है, जिन्होंने बच्चों को बाल श्रम, शोषण और अन्याय से मुक्त कराने की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति दी। खास बात यह रही कि पुस्तक का विमोचन किंशु कुमार, ललिता दुहारिया, पायल जांगिड़, शुभम राठौर, कलाम और मनन अंसारी जैसे छह युवाओं ने किया, जिन्हें कभी सत्यार्थी के अभियान ने बाल श्रम से मुक्त कराया था। आज ये युवा इंजीनियर, रिसर्च स्कॉलर, मैनेजमेंट प्रोफेशनल और सामाजिक कार्यकर्ता बनकर बदलाव की अलख जगा रहे हैं।

साहित्य और समाज का संगम

पुस्तक चर्चा में युवा एकता फाउंडेशन की संस्थापक ट्रस्टी पुनीता रॉय और वरिष्ठ लेखिका नमिता गोखले ने भी हिस्सा लिया। इस अवसर पर साहित्य प्रेमियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सत्यार्थी की इस प्रेरणादायक यात्रा को सराहा। 'दियासलाई' राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई है और यह न केवल एक आत्मकथा, बल्कि बच्चों के अधिकारों के लिए संघर्ष का दस्तावेज़ भी है।

 

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