Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

आंधियों में दीप

कविताएं
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement
अरुण आदित्य

अपने आत्म से प्रदीप्त

अकिंचन दीप हूं

Advertisement

हज़ारों खतरे हैं

मेरी टिमटिमाहट पर

प्रेम का दीप हूं

खतरे में है

हर हृदय को दीप्त

करने का मेरा स्वप्न

द्वेष के अंधड़ दे रहे आदेश

किसके हृदय में जलना है

किसका घर जलाना है

न्याय का दीप हूं

खतरे में है

हमारी आत्मा की दीप्ति

हवा ने खोल दी है

आंख की पट्टी

पिलाती है नई घुट्टी

कि अब न्याय नहीं

निर्णय करना है

किसे दंड देना है

किसे अभय करना है

चेहरा देख-परख कर

तय करना है

ज्ञान का दीप हूं

खतरे में है अस्तित्व मेरा

चारों तरफ से कस रहा

अज्ञान का घेरा

मध्यरात्रि कह रही है

स्वयं को स्वर्णिम सवेरा

दीप से कहती

समेटो बुद्धि का डेरा

मूढ़ता में गूढ़ता का

गान करता भव्य उत्सव

ज्ञान से अज्ञान कहता

गप्प दीपो भव।

Advertisement
×