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पिता के साये में आत्मीय अहसास

पुस्तक समीक्षा
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अरुण नैथानी

गंगाराम राजी हिमाचल के पर्वतीय अंचल में सक्रिय ऐसे सृजनकार हैं जो प्रगतिशीलता के साथ सूक्ष्म विषयों पर बेहद संवेदनशील सृजन करते हैं। उनके विपुल साहित्य में इसकी बानगी शिद्दत के साथ नजर आती है। एक तरफ संवेदनशील रचनाकार तो दूसरी ओर निजी जीवन में मुस्कराते-खिलखिलाते अलमस्त-अल्लहड़ किरदार। जीवन के नौवें दशक में दस्तक देते राजी के व्यवहार में कोई राज नहीं, एक खुली किताब है। समीक्ष्य कृति ‘पिता के साए में (बाबा)’ में बारे में उनका कहना है कि गोर्की की विश्वप्रसिद्ध रचना ‘मां’ पढ़ते-पढ़ते यह विचार मन में आने लगा कि जीवन में मां का जितना महत्व है पिता का महत्व भी कोई कम नहीं। दरअसल, गोर्की को मां के महत्व के साथ रूसी क्रांति के समय के समाज का हाल दर्शाना भी था।’

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निस्संदेह, गोर्की की रचना ‘मां’ ने ही पिता के योगदान पर केंद्रित उपन्यास लिखने की आधारभूमि गंगाराम राजी को दी। जिसके प्रसंगवश वे समकालीन समाज के यथार्थबोध से पाठकों को अवगत कराने में सफल भी हुए। उनके अवचेतन में पिता के लिये बाबा शब्द ही रचा बसा रहा, जिसकी वजह से उन्होंने साहित्यकारों मित्रों की सलाह पर नाम ‘पिता के साये में’ रखने के बावजूद कोष्ठक में ‘बाबा’ शब्द भी शीर्षक में जोड़े रखा। जो अखरता तो है लेकिन रचनाकार के मनोभावों को भी दर्शाता है।

वास्तव में राजी ने उपन्यास में पिता के दायित्व, महत्व व योगदान का संवेदनशील चित्रण किया है। उपन्यास के केंद्र में बाल जीवन में उपेक्षित एक साधारण इंसान गुलाबू की कहानी है जो अनपढ़ होते हुए भी हाड़-तोड़ मेहनत करके बच्चों को शिक्षा-संस्कार देकर उन्हें योग्य व संस्कारी बनाता है। सगी न होने के बावजूद श्यामा का बेटी की तरह लालन-पालन करता है। रचनाकार ने इन पात्रों के जरिये समकालीन समाज के यथार्थ और आदर्श का समन्वय दर्शाया है। उपन्यास के घटनाक्रम के साथ इतिहास, राजनीति व सामाजिक विद्रूपताओं का जीवंत अक्स उभरता है। उपन्यास की शब्दावली में हिमाचली लोकव्यवहार में प्रचालित भाषा सौंदर्य व शब्दों-मुहावरों का सहजता से उपयोग भी हुआ है। रचना में गुलाबू द्वारा राधा का उद्धार और कालांतर उसे जीवनसंगिनी बनाने तथा फिर गुरबत से जूझते हुए बच्चों का भविष्य संवारने तक की यात्रा पाठक को उद्वेलित करती है। कबीर पंथी मित्र रतन सिंह, साहनी, देवीराम, चांदनी जैसे किरदार उपन्यास को गति देते हैं। सही मायनों में राजी पिता की प्रतिष्ठा को स्थापित करने की कोशिश में सफल होते नजर आते हैं।

पुस्तक : पिता के साए में (बाबा) उपन्यासकार : गंगाराम राजी प्रकाशक : नमन प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 223 मूल्य : रु. 495.

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