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सूफी चिंतन और साहित्य का समन्वय

पुस्तक समीक्षा
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अमीर खुसरो का पुनर्पाठ व सही परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन अभी भी शेष है। संभवतः अमीर खुसरो अपने समय के ऐसे अद्वितीय साहित्यकार थे, जो कवि, लेखक, सिपहसालार, इतिहासकार और सूफी अध्येता भी रहे।

वे फारसी व हिन्दी में काव्य-रचना के शिखर पर माने गए और संभवतः एकमात्र ऐसे सृष्टा थे, जिनकी फारसी कविता ईरानी सभ्यता व संस्कृति को समझने में मदद करती है, जबकि हिन्दवी कविता हमें हमारे अपने देश के रुझानों से रूबरू कराती है।

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दरअसल, राजपरिवार और उससे जुड़े अमीर-उमराव की फारसी व तुर्की भाषा के मेलजोल से खुसरो ने हिन्दवी का सृजन किया। यह वही हिन्दवी थी, जिसे दिल्ली, अवध, मुल्तान और लाहौर के बाजारों में नानबाई, लोहार, कुम्हार, कसाई, सब्जी विक्रेता और भिखारी तक बोल रहे थे।

खुसरो जहां एक ओर कलंदरों, सूफियों, उलेमाओं और धर्मशास्त्रियों से निकट संबंध रखते थे, वहीं उनका सामान्यजन से बराबर का जुड़ाव था।

कुछ साहित्य-अध्येताओं का दावा है कि अमीर खुसरो ने तीन से चार लाख पद्यों की रचना की थी, मगर यह भी एक तथ्य है कि लाखों की संख्या में पदों में से अधिकांश नष्ट हो गए और संकलन के नाम पर एक भी संग्रह उपलब्ध नहीं है।

हमारे प्राचीन साहित्य के साथ किस स्तर पर छेड़छाड़ की गई, इसका अनुमान एक जर्मन विद्वान डॉ. एलवास स्प्रेंगर के आलेखों से मिलता है। वह व्यक्ति 1845 में ईस्ट इंडिया कंपनी में एक चिकित्सक के रूप में आया था। अपनी नौकरी के मध्य वह दिल्ली, अलीगढ़, लखनऊ, मद्रास व कलकत्ता के विभिन्न शिक्षा संस्थानों में रहा और जब वह 1856 में जर्मनी लौटा, तो उसके पास 1,972 भारतीय हस्तलिखित पांडुलिपियां थीं। मगर फिर भी भारतीय धरोहर की कोई चोरी का आरोप भी नहीं लगा।

इस कृति के माध्यम से यह तथ्य तो उभरता ही है कि खुसरो अपने समय के महान साहित्यकार भी थे और सूफी चिंतक भी। उनकी महानता व तत्कालीन भाषा-ज्ञान के बारे में डॉ. शम्सुर्रहमान फारूकी के निष्कर्ष प्रासंगिक हैं। उन्होंने अपने एक शोध पत्र ‘उर्दू का प्रारंभिक काल’ में हिन्दवी के समाप्त होने के कई कारण बताए हैं। एक बड़ा कारण यह हो सकता है कि जो लोग हिन्दवी के स्थान पर उर्दू लागू कर रहे थे, उन्हें उस समय तक सफलता नहीं मिलती जब तक वे हिन्दवी/हिंदी भाषा को अप्रभावी न कर देते। यदि चार सौ वर्ष प्राचीन भाषा को लागू करना है, तो एक हजार वर्ष प्राचीन भाषा के महत्व को कम करना आवश्यक था। ऐसे में जब भाषा-निर्माण के प्रकरण में मुहावरे, शब्दावली की स्वच्छता का दौर प्रारंभ हुआ, तो उस आंधी में अधिकतर धरोहर भी बह गए, जिनमें खुसरो का हिन्दवी कलाम भी सम्मिलित था।

कुल मिलाकर, यह कृति ‘अमीर खुसरो— व्यक्तित्व, चिंतन और सम्पूर्ण हिंदी कलाम’ एक महत्वपूर्ण कृति है।

पुस्तक : अमीर खुसरो-व्यक्तित्व, चिंतन और सम्पूर्ण हिंदवी कलाम लेखक : ज़ाकिर हुसैन ज़ाकिर प्रकाशक : राधा कृष्ण पेपरबैक्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 365 मूल्य : रु. 450.

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