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संत्रास के दौर का अभिनव परिदृश्य

पुस्तक समीक्षा

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सुभाष रस्तोगी

पंजाब के चर्चित उपन्यासकार, कथाकार और नाटककार डॉ. अजय शर्मा की सृजन यात्रा कहानी से शुरू हुई, बरास्ता कहानी होते हुए संपूर्णतया उपन्यास को समर्पित हो गई। वैसे उपन्यास को एक समानांतर दुनिया कहा गया है। उनका सद्यः प्रकाशित उपन्यास ‘शंख में समंदर’ पाठकों से मुखातिब है जो इंटरनेट के माध्यम से बने उन रिश्तों के नाम उन्होंने समर्पित किया है जिन्हें वे कभी नहीं मिले। दरअसल उपन्यास लेखन उनके लिए प्रारंभ से ही एक चुनौती की तरह रहा है। उन्होंने अपने इस सद्यः प्रकाशित उपन्यास ‘शंख में समन्दर’ में बिल्कुल एक नयी जमीन, नयी संरचना तकनीक के साथ प्रस्तुत की।

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दरअसल, उपन्यास ‘शंख से समन्दर’ का मुख्य कथानक कोरोना महामारी की दूसरी लहर के भयावह मंजर पर केन्द्रित है जिसकी हौलनाक तस्वीरें आज भी हमारी आंखों के सामने आ खड़ी होती है। इस उपन्यास की अलग से रेखांकित की जाने वाली विशेषता वह भी है कि पूरा उपन्यास अॉनलाइन लिखा गया है। इस वास्तविक दुनिया का हाड़-मांस का कोई भी पात्र इस उपन्यास में नहीं है। उपन्यास की कहानी सोशल मीडिया पर चल रहे विभिन्न ऑनलाइन कार्यक्रमों पर केन्द्रित है जिसमें एक्टिंग केन्द्र में है। इस उपन्यास का नायक डॉ. केशव जो कोरोना का भुक्तभोगी रहा है और अब कोरोना मुक्त होकर श्रीमाली का ऑनलाइन एक्टिंग कोर्स ज्वाइन करके अपने एक्टिंग के युवा अवस्था के सपनों को पूर्ण करना चाहता है।

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उपन्यास में सूत्रधार की भूमिका में श्रीमाली एक्टिंग क्लास के समापन के अवसर पर ऑनलाइन जुड़ते ही ट्रेनिंग क्लास के सभी प्रशिक्षणार्थियों से अनुरोध करते हैं कि हम डॉ. अजय शर्मा द्वारा लिखित पंजाबी नाटक ‘छल्ला नाव दरिया’ खेलेंगे। अब आप अपना कैरेक्टर बुनिए- इस नाटक को पढ़िए। असल में पूरे नाटक में दर्द पसरा हुआ है। यह दर्द लोक जीवन के साथ चलता हुआ, पंजाबी गायकी का हिस्सा बना। नाटक के मुताबिक उसकी मां, उसे जन्म देकर, मृत्यु का ग्रास बन गई। उसके बाप जल्ले ने मां-बाप का प्यार देकर, उसे पाला-पोसा। बाप ही उसकी मां है और बाप ही पिता। छल्ले की जिंदगी में सौतेली मां न आए, उसी के चलते जल्ला ताउम्र दूसरी शादी नहीं करता। लेखक ने खूबसूरती से अपनी कल्पना से इसको गढ़ा है। ...जिस छल्ले को उसका बाप इतने मोह के साथ लाड़-प्यार से पालता है, उसका सतलुज और व्यास के संगम वाले दरिया में डूब कर मर जाना, अंदर तक झकझोर देता है।

नाटक ऑनलाइन खेला जाता है और बेहद सफल रहता है। पात्र दिखाई नहीं देते, लेकिन संवादों का उतार-चढ़ाव सब कुछ अमूर्त को मूर्त कर देता है।

हिन्दी के बहुत कम उपन्यास ऐसे हैं जिसमें पाठक किसी न किसी पात्र को स्वयं के साथ आत्मसात‍् कर लेते हैं। इस उपन्यास में यह गुण प्रचुरता से है और वह भी तब इस उपन्यास में सोशल मीडिया पर चल रहे विभिन्न ऑनलाइन कार्यक्रमों के कथा-सूत्रों का प्रश्रय लिया गया है।

पुस्तक : शंख में समंदर लेखक : डॉ. अजय शर्मा प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर पृष्ठ : 216 मूल्य : रु. 250.

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