राजा अंदर जाकर सोफे पर बैठकर कहने लगता है- ‘जानती हो एक दुःखदायी घटना हुई है। विमान का बेटा आज एक दुर्घटना में मारा गया है। कहते हैं लड़का पढ़ने-लिखने में अच्छा था। स्कूल जाते समय एक तिपहिए ने टक्कर मारी और सामने से आते एक ट्रक के चपेट में आ गया। मोहल्ले के लड़के ही उसे अस्पताल ले गए थे। अगर उसे समय पर खून मिल जाता तो शायद बच जाता।’ इसके आगे सीमा सुन न सकी। सिर में हज़ार नगाड़े एक साथ बज उठे।
‘सचमुच मुझे बहुत बुरा लग रहा था। वे सज्जन जब ऐसा कह रहे थे। आपने तो ठीक से सुना ही नहीं। आपके तो बचपन के मित्र हैं। पहले कितनी ही बार हमारे यहां आते थे। फिर आपके पास तो पैसे भी थे। कुछ पैसों की ही तो बात थी। आपका यह व्यवहार मुझे अच्छा नहीं लगा’, कहकर सीमा गंभीरतापूर्वक राजा के चेहरे की ओर देखती है।
रास्ते में बहुत भीड़ थी। ट्राम-अड्डे के पास ही राजा और सीमा खड़े थे। बहुत दिनों के बाद आज के शनिवार को छुट्टी के दिन फिल्म देखने निकले थे। आजकल समय ही नहीं मिलता। इसके अतिरिक्त दूरदर्शन की कृपा से बाहर जाकर फिल्म देखने का कार्यक्रम ही नहीं बन पाता। टिकट की समस्या के साथ कई अन्य अनचाहे झमेले आकर खड़े हो जाते हैं। उत्तम कुमार की पुरानी रोमांटिक फिल्म लगी थी। सो, राजा ने पहले से ही टिकट ले रखा था। सिर्फ सीमा ही नहीं राजा भी उत्तम कुमार का परम भक्त है, इसलिए वे आज आए हैं, वरना आजकल की बांग्ला और हिंदी फिल्में तो देख नहीं सकते। न कहानी, न ही पहले की तरह कर्णप्रिय गीत। सिर्फ ‘टीनेजरों’ के लिए है नायक-नायिकाओं की हुल्लड़बाजी और थोड़ी मारधाड़।
दोपहर के शो में ही वे आए थे। फिल्म समाप्त होने के उपरांत जब हॉल के बाहर स्टाल पर दोनों चाय पी रहे थे, ठीक उसी समय विमान वहां प्रकट हुआ। राजा के स्कूल के दिनों का परम मित्र। कभी उसकी आर्थिक दशा अच्छी थी। रुपये-पैसे का अभाव न था पर स्थिति बिगड़ते ही उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूटने लग पड़ा। फिर शरीकों से मुकदमेबाजी शुरू हुई और पारिवारिक दुर्दशा बढ़ती ही चली गई। स्कूल की पढ़ाई समाप्त करने के बाद विमान ने आगे पढ़ाई नहीं की अर्थात् कर नहीं सका। फिर दूसरे मोहल्ले के कुछ युवक उसके मित्र बन गए थे जिनका सामाजिक परिचय घृणित है। घर से भी अधिकतर बाहर रहने लगा। कई भाई-बहन हैं। उसके पिता शेयर बाजार में दलाली कर सामान्य धन-उपार्जन किया करते थे। राजा फिर भी विमान की खोज-खबर रखने का प्रयत्न करता। कभी-कभी विमान भी आकर राजा के पास समय बिता जाता यानी कि एक तरह से मित्रता बनाए रखने का प्रयत्न जारी था। उसका एक कारण भी था। न जाने क्यों राजा सचमुच विमान को बहुत स्नेह करता और अगर विमान कुछ मांगता भी तो न नहीं कर पाता। कभी-कभी रुपये-पैसे से भी उसकी सहायता करता। शिक्षा समाप्त करने के बाद राजा को रेलवे में नौकरी मिल गई थी। दो वर्षों में विवाह-बंधन में भी बंध गया। सीमा इंजीनियर पिता की एकमात्र संतान थी। उसके मामा ने ही बात पक्की की थी। सीमा और राजा की अभिरुचियों में भी यथेष्ट समानता थी। विवाह के समय राजा ने भी विमान से यह बात कही थी, पर वह विवाह में नहीं आया था। तकरीबन महीने-भर बाद दो अच्छी किताबें उपहार में लेकर उपस्थित हुआ और सीमा से परिचय व ढेर सारी बातें करके चला गया।
उसके बाद भी वह कई बार आया। सीमा को वह अच्छा ही लगता था। रसिक व्यक्ति है और बातें भी बहुत करता है। विमान के आने पर राजा पहले तो प्रसन्नता ही प्रकट करता पर जलपान होने के पश्चात न जाने क्यों उसके व्यवहार में तबदीली आ जाती। मतलब यह कि राजा नहीं चाहता था कि विमान सीमा के साथ अधिक बातें करे। एक दिन बातों ही बातों में राजा ने सीमा को बताया कि विमान रसातल में जा चुका है। दो बहनें ब्याहने को हैं और वह न जाने कहां से एक युवती को कोर्ट मैरिज कर घर ले आया है, इसीलिए तो घर में भी मां-बाप से नहीं बनती। वह बिल्कुल बर्बाद हो चुका है, इसलिए कह रहा हूं, इससे जरा बचकर ही रहना।
यह सब सुनकर सीमा को बुरा लगा था, दुःख भी हुआ था। ऊपर से तो मनुष्य की पहचान नहीं होती और फिर आजकल तो सभी लोग चेहरे पर रंगीन नकाब चढ़ाए होते हैं। प्राय: छह माह पूर्व एक बार फिर विमान आया था तो राजा ने उसे अंदर के कमरे में नहीं लाया। सीमा भी चाय देकर लौट गयी थी। उस दिन थोड़ी ही देर में विमान चला गया था।
कई दिनों बाद आज अचानक सिनेमाहाल के बाहर धूमकेतु की तरह विमान को देखकर इसीलिए हैरान रह गयी थी सीमा। कुछ कहना चाहता था वह, पर सीमा को अनदेखा करते हुए राजा का हाथ पकड़ वह एक ओर ले गया। फिर राजा के जिज्ञासु चेहरे की ओर देखते हुए वह दबे स्वर में कहने लगा—‘घर में सात दिनों से पत्नी अस्वस्थ पड़ी है। उचित चिकित्सा भी नहीं हो पा रही है। कुछ रुपए चाहिए।’
थोड़ी दूर पर खड़ी सीमा उसकी बातें सुन रही थी।
राजा ने भावशून्य आंखों से विमान की ओर देखते हुए कहा, ‘विश्वास करो मेरे भाई, मेरे पास कुछ भी नहीं है। साथ ही महीने के अंतिम दिन चल रहे हैं, इसीलिए उधार भी नहीं दे सकता। तुम कहीं और कोशिश कर लो।’ कहते ही सीमा की ओर देखते हुए राजा आगे बढ़ गया।
राजा का यह व्यवहार सीमा को बहुत अखरा। यही बात अन्य तरीके से भी कही जा सकती थी। क्या ही दयनीय स्थिति थी उस व्यक्ति की- एक ढीला-ढाला पायजामा, गेरुए रंग की कमीज़ भी फटी हुई, सिर के बाल उलझे हुए। सीमा को दुःख हुआ था। चुप्पी साधे रास्ते पर चली जा रही थी पर ट्राम अड्डे के पास पहुंचकर वह अधीर हो उठी। मन के क्रोध व दुःख को दबाए सीमा के चेहरे की ओर देखते हुए राजा हंसा। फिर कहा, ‘विमान मेरे बचपन का मित्र है। मैं तुमसे कम उससे स्नेह नहीं करता परंतु अब उसकी किसी बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता। न जाने कितने रुपये उसने मुझसे झूठ बोलकर लिए हैं। जानती हो उसकी सारी बातें झूठी होती हैं। दफ्तर में भी वह बीच-बीच में आता रहता है। गत माह ही बिना बीस रुपये लिए उसने मेरा पिंड नहीं छोड़ा था।’
‘वे कुछ करते नहीं।’
‘हां करता है न। रेस खेलता है, शराब पीता है और कभी-कभी जुए के अड्डे पर भी जाता है।’
सीमा के प्रश्न का उत्तर देकर राजा ने मुंह फेर लिया। सीमा कुछ कह न सकी। सच ही तो है, घर में पत्नी-बच्चे बिना खाए रहें और वह नशा करे। उधार का पैसा नष्ट करना उचित है क्या?
एक ट्राम के आते ही वे उसमें सवार हो गए। घर पहुंचने पर भी कुछ देर तक विमान की बातें चलती रहीं। राजा ने ही एक-एक कर बताया कि किस तरह आजकल मित्रों के समक्ष असत्य की भूमिका बांध और अभिनय कर वह रुपये ऐंठता है। कभी पत्नी को अस्पताल भेजता है, कभी बच्चे को टाइफाइड और कभी बेटी को कुपोषण। इस तरह कोई-न-कोई समस्या खड़ी रहती है और बोलता भी इस लहजे से कि उस समय अविश्वास ही नहीं होता। बातें समाप्त कर सीमा को पुनः सचेत करता है राजा, ‘मैं घर न रहूं और वह अचानक आकर रुपये-पैसे की मांग करे तो हरगिज मत देना।’
राजा की बातें सुनकर सीमा मुस्कराती है पर उसके मन में विमान की करुण छवि डूबती-उतराती रहती है।
तकरीबन तीन माह बाद एक दोपहर भोजन के बाद सीमा एक पत्रिका लेकर बिस्तर पर लेटी हुई थी कि द्वार पर दस्तक हुई। राजा दफ्तर में था और नौकरानी पड़ोस में। बाहर के दरवाजे की ओर सीमा बढ़ी और दरवाजा खोलते ही विमान धड़धड़ा कर अंदर आ गया। सीमा आश्चर्यचकित होकर रह गयी। सीमा की ओर एक बार देखकर विमान ने सिर झुका लिया। माहौल न जाने कैसा अरुचिकर हो उठा। सीमा के कुछ बोलने के पूर्व ही विमान सिर झुकाए ही कहने लगा।
‘सचमुच इस तरह घर में घुस आने के लिए क्षमा चाहता हूं। मन-मस्तिष्क ठीक नहीं है। जगह-जगह भाग-दौड़ कर रहा हूं। छोटे बेटे का ‘एक्सीडेंट’ हो गया है। मोहल्ले के कुछ लड़के ही उसे लेकर अस्पताल गए हैं। खून देना पड़ेगा। कुछ पैसों की जरूरत है। राजा के दफ्तर जाने का समय नहीं है मेरे पास। मुझे कुछ रुपये उधार देंगी भाभी जी। मैं राजा को समझा लूंगा।’
सीमा एकटक उसके चेहरे की ओर देखे जा रही थी। ऐसी परिस्थिति में उसे क्या कहना चाहिए और क्या नहीं, वह समझ नहीं पा रही थी। फिर अचानक उसे राजा की चेतावनी झकझोर गयी। विमान झूठ बोलता है, मूर्ख बनाकर रुपये उधार ले जाता है। अतः विमान के रुग्ण करुण चेहरे को देखते हुए अपने को वह संयत कर लेती है और थोड़ा पीछे हटकर गंभीर स्वर में कहती है, ‘मेरे पास तो रुपये-पैसे रहते नहीं है। आपके मित्र ही रखते हैं और इस समय वे घर पर नहीं हैं। ऐसा करें आप उनके दफ्तर में ही चले जाएं।’
कहते-कहते दरवाजे पर खड़ी हो जाती है सीमा। विमान सिर्फ एक बार सिर ऊपर उठाता है। उसके बाद दोनों हाथों से अपने सिर के बाल नोंचता और बड़बड़ाता बाहर निकल जाता है। सीमा दरवाजा बंद कर शयन कक्ष में जाती है। फिर पानी पीकर लेट जाती है। वक्ष स्थल पर एक बोझ-सा अनुभव करती है वह।
उसके बाद कॉलिंग-बेल की आवाज़ पर ही उसकी नींद टूटती है। विमान के बारे में सोचते-सोचते ही सीमा सो गयी थी। दरवाजा खोलने पर हतप्रभ रह जाती है वह। राजा समय से पहले ही घर लौट आया था। जिज्ञासु होकर वह राजा की ओर देखती है और राजा अंदर जाकर सोफे पर बैठकर कहने लगता है- ‘जानती हो एक दुःखदायी घटना हुई है। विमान का बेटा आज एक दुर्घटना में मारा गया है। कहते हैं लड़का पढ़ने-लिखने में अच्छा था। स्कूल जाते समय एक तिपहिए ने टक्कर मारी और सामने से आते एक ट्रक के चपेट में आ गया। मोहल्ले के लड़के ही उसे अस्पताल ले गए थे। अगर उसे समय पर खून मिल जाता तो शायद बच जाता।’
इसके आगे सीमा सुन न सकी। सिर में हज़ार नगाड़े एक साथ बज उठे। राजा ही कहे जा रहा था - ‘मेरे दफ्तर में भी विमान गया था पर उसकी बातों पर तो विश्वास नहीं किया जा सकता। इसके अलावा मैं कुछ व्यस्त था। उसके जाने के बाद गौतम ने आकर सारी बातें बताईं। मन सचमुच बोझिल हो उठा था, इसलिए छुट्टी लेकर आ गया।’
अपनी बातें समाप्त कर राजा सीमा के मुंह की ओर देखता है।
सीमा एक ही दशा में सिर झुकाए बैठी रही। दोनों के मन की गहराई में कहीं अपराध-बोध कसमसाने लगा था। दोनों में से कोई भी कुछ कह नहीं पा रहा था। धीमे कदमों से सीमा राजा के बगल में आकर बैठ जाती है और फिर अचानक फफक कर रोने लगती है।
मूल बांग्ला से अनुवाद : रतन चंद ‘रत्नेश’

