कृष्ण कुमार रत्तू
अंग्रेजी भाषा के लेखक अब्दुल रजाक गुरनाह को नोबेल का पुरस्कार मिलना एक अप्रत्याशित घटना ही कहा जा सकता है क्योंकि वह नोबेल की रेस में इससे पहले कभी नहीं थे। हालांकि, बुकर जैसा पुरस्कार उनको मिलते-मिलते रह गया था। जो अभिव्यक्ति उनके साहित्य में शरणार्थी समस्या को लेकर है, वह उन्हें दुनिया के अद्भुत अंग्रेजी लेखकों में खड़ा करती है।
जिंदगी उस संघर्ष का नाम है, जिस पर लगातार हर दुख-सुख में यात्रा करनी पड़ती है। यह कथन इस वर्ष के साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर अब्दुल रजाक गुरनाह ने अपनी डायरी में इस तरह से लिखा जो बाद में उनकी बेहद चर्चित पुस्तक ‘मेमोरी आफ डिपार्चर’ में उस रूप में परिलक्षित हुए कि जीवन की विसंगतियों के नए बिखरे हुए अक्षरों के कोलाज आज साहित्य की नई परिभाषा तय करते हैं।
अब्दुल रजाक ने बताया है कि ब्रिटिश काल की कॉलोनियों, पूर्वी अफ्रीका से शरणार्थियों की समस्या एवं शासन व्यवस्था के प्रभाव किस तरह से सभ्यताओं को समाप्त करते हैं। किस तरह से आदमी का जीवन दुश्वारियाें, संघर्षों एवं दुखों से उबरकर नये सोपान तय करता है। उन सारी संभावनाओं को इन अक्षरों में अंकित किया है।
असल में अब्दुल रजाक उन लेखकों में से हैं, जिन्होंने अपने शब्दों से एक नया परिवेश खड़ा किया है क्योंकि वे त्रासदियों से गुजरते हुए एक नई दुनिया बनाने के लिए सामने आए। बहुत कम लोगों को पता है कि तंजानिया के एक छोटे से शहर जंजीबार में पैदा होने वाले अब्दुल रजाक ने ऐसी जिंदगी बसर की है कि वे जिंदगी का एक उदाहरण बन गए हैं। अब्दुल रजाक ने कैट विश्वविद्यालय से अपनी डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। वह कहते हैं कि बाद में उन्होंने अंग्रेजी के उन लेखकों पर काम किया जो आज उनसे भी बड़े नाम हैं। एक भाषण में उन्होंने कहा था कि मैं वो आदमी हूं, जिसको अंग्रेजी में रुचि नहीं थी। अपनी भाषा से टूट चुका था परंतु मैंने कॉलोनियल समय में जिस टूटन से आदमी को टूटते हुए तथा संघर्ष में जीते हुए देखा है, उसे अपने शब्दों में उतारने की कोशिश की है।
रजाक के उपन्यासों तथा रचनाओं में, जिनमें 1993 में बाई दा सी तथा जंजीबार कुछ इस तरह की कहानियां हैं, जिनमें वह आम जनजीवन से उठते हुए आदमी को आसमान में तैरता हुआ देखते हैं।
आजकल रजाक अपने परिवार के साथ कैट में रहते हैं तथा अपनी बायोग्राफी पर काम कर रहे हैं। उनका मानना है कि इस नई दुनिया में अभी भी शेष समाज की आवाज है तथा हमारा लिखा हुआ उनका भविष्य है क्योंकि इसमें उनकी तस्वीर के कई कोलाज धूमिल होते रंगों में दिखाई देते हैं।
उनके रचना कर्म में जिंदगी की दौड़ की कई धूप-छांव, स्मृतियों के अंश हैं, जिसमें समाज की पीड़ा का चेहरा दिखाई देता है। जिस ढंग से शब्दों को अनुभूति से बयान किया गया है, वह पाठकों की संवेदनाओं से संवाद करते हुए कथा एवं जिंदगी के मर्मों का एक अनूठा कोलाज बनाती है। उनके समस्त साहित्य में जीवन की विविधता के कोलाज इस तरह से दिखाई देते हैं, जिन्हें एक गीत की मानिंद सुना जा सकता है। यही उनके साहित्य की सबसे बड़ी खूबी भी मानी जा सकती है।
इन दिनों जब बदलते हुए सांस्कृतिक परिवेश में जीवन के मूल्यों एवं नये जीवन प्रवाह में साहित्य एवं संस्कृति का स्पेस कम हो रहा है, ऐसे में अपने शब्दों के बलबूते आदमी की पहचान एवं समाज की नई प्रवृत्तियों को अपने साहित्य द्वारा प्रस्तुत करना, यह उनके रचे हुए साहित्य की सबसे बड़ी पहचान के रूप में हम देख सकते हैं।
यह सच है कि इन दिनों जब साहित्य के नोबेल की बात होती है तो उसमें विश्व के महाद्वीपों में विभिन्न भाषाओं में रचे साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन परखा जाता है। समय के साथ जो शब्द हाशिए पर छूट गए हैं, उन शब्दों से साहित्य का एक नया संसार पैदा करने वाले कुछ एक रचनाकारों में अब्दुल रजाक ने अपने नाम को सार्थक किया है। रजाक की वे पुस्तकें जिन्होंने बेहद प्रशंसा प्राप्त की-बिलग्राम, वे, मेमोरी आफ डिपार्चर, द पैराडाइज अादि हैं।
अब्दुल रजाक ने विषय परिस्थितियों के दौर से गुजरते हुए लिखने का हौसला दिखाया है, जिनमें उनकी पुस्तक पैराडाइज एक अद्भुत रचना है, जिसका विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। उनको साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिलना इस बात की गवाही है कि अभी भी शब्द की संरचना में मानवीय मूल्य मुख्यधारा का वह आलोक है, जिससे आने वाली नस्लों एवं आने वाले भविष्य को हम संजोकर रख सकते हैं।