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सामाजिक विडंबनाओं के चित्र

पुस्तक समीक्षा

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रतन चंद ‘रत्नेश’

विमला गुगलानी ‘गुग’ द्वारा रचित कहानी-संग्रह ‘मन-दर्पण’ अपनी सार्थकता सिद्ध करता हुआ भारतीय परिवारों की यथार्थ तस्वीर पेश करता है। इसमें समाज और परिवेश से ली गई घटनाएं गुंफित हैं जिन्हें बड़ी सहजता और सरलता से उकेरा गया है। फलस्वरूप ये कहानियां देखी-सुनी और भोगी-सी प्रतीत होती हैं।

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विवाहों में लेन-देन की परिपाटी को पहली कहानी ‘वही हार’ बारीकी से प्रतिबिंबित करती है जबकि पीढ़ियों के अंतराल को समेटे ‘नये साल की सौगात’ का समापन सुखांत से हुआ है। हमारे समाज में आज भी कुछ तबका ऐसा है जो कन्याओं को हेय दृष्टि से देखता है और लड़कों को अत्यधिक महत्व देता है। ‘जस्सी और प्रीति’ के माध्यम से पंजाब के ग्रामीण परिवार का खाका खींचा गया है, जहां ‘पुत्त मिठे मेवे, रब सबना नूं देवे’ का आशीर्वाद और लड़कियों के प्रति कड़वा नीम का भेद व्याप्त है जबकि यहां युवकों में बढ़ रही नशाखोरी को रोकने में युवतियां भी किसी न किसी बहाने अपना योगदान दे रही हैं।

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इस संग्रह की लगभग सभी कहानियां पारिवारिक पृष्ठभूमि में रचित हैं और प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से कोई न कोई संदेश छोड़ जाती हैं। बेटी विहीन परिवार में गृहस्थ महिला की त्रासदी और उसे किन-किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है, यह ‘एक कप चाय’ में उभरा है।

संग्रह की सभी इक्कीस कहानियां इसी तरह आस-पास के किसी न किसी मसले को उठाती हैं। मुसीबत में अपनों से कहीं अधिक कोई पराया दुःख बांटता है, यह ‘अपने-पराये’ में देखने को मिलता है। इसी तरह ‘ऐसे कारज कीजिए’ में कोरोना के दौरान एक-दूसरे की सहायता करने वालों के साथ-साथ ऐसे लोगों का भी जिक्र है जो समाज में किसी से कोई वास्ता नहीं रखते।

पुस्तक : मन-दर्पण लेखिका : विमला गुगलानी ‘गुग’ प्रकाशक : सप्तऋषि पब्लिकेशन, चंडीगढ़ पृष्ठ : 152 मूल्य : रु. 220.

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