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पहचान

लघुकथा
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अशोक भाटिया

आप कौन हैं?

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आदमी।

मेरा मतलब, किस धर्म से हैं?

इंसानी धर्म।

नहीं, मतलब हिन्दू, मुसलमान, ईसाई वगैरा।

हिन्दू धर्म से!’ कहकर वह मुस्कुराया।

हिन्दुओं में कौन हैं?

हिन्दुओं में हिन्दू ही तो होंगे।

मेरा मतलब, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य वगैरा?

ओह! क्षत्रिय हूं।

क्षत्रियों में कौन हैं?

क्या मतलब?

यानी खत्री या अरोड़ा?

‘खत्री’ कहकर वह हंसा|

खत्रियों में कौन हैं?

क्या मतलब, खत्रियों में खत्री ही तो होगा।

नहीं, ऐसा नहीं है।

तो खत्री क्या खत्री नहीं होता?

मेरा मतलब खत्री में जाति। जैसे मल्होत्रा, सल्होत्रा, गिरोत्रा वगैरा, तनेजा, बवेजा, सुनेजा वगैरा...

हम मल्होत्रा हैं।’ वह अब गंभीर हो गया था।

सनातनी हो या आर्य समाजी?

मैं कोई-सा नहीं।

किस देवी-देवता को मानते हो?

किसी को नहीं।

पीछे से कहां से आए?

क्या मतलब?

मतलब, पीछे से पाकिस्तान से आए या यहीं के हो?

पता नहीं।

जिला कौन-सा था?

पता नहीं।

गांव कौन-सा था?

पता नहीं।

सूर्यवंशी हो या चंद्रवंशी?

पता नहीं।

राजपूत हो या नहीं?

पता नहीं।

शाकाहारी हो या मांसाहारी?

जब शाक-सब्जी खाता हूं तो शाकाहारी हूं। जब मांस-मछली खाता हूं तो मांसाहारी हूं। (प्रश्नकर्ता थोड़ी देर चुप हुआ)

तुम्हारा गोत्र क्या है?

वो क्या होता है?

तुम्हें अपना गोत्र ही नहीं पता! कैसे आदमी हो तुम?

(खीझकर) जीता-जागता आदमी तुम्हारे सामने खड़ा हूं कि नहीं? फिर इन बेकार सवालों का क्या मतलब?

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