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हास्य, व्यथा और मंचीय मुशायरा

पुस्तक समीक्षा
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‘ठेके पर मुशायरा’ की भाषा हिंदी-उर्दू है और इसका काव्यात्मक शैली का पुट है। छह दृश्यों वाले इस नाटक के बारे में कहा जा सकता है कि यह आम आदमी की भाषा में लिखा गया है। नाटक की विषय-वस्तु उस दौर को इंगित करती है जब मुशायरे और कवि सम्मेलन खूब प्रचलित थे, पर अब वह स्थिति नहीं रही। आजकल ऐसे समारोहों का उद्देश्य केवल पैसा कमाना रह गया है। यही वजह है कि कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी ठेकेदारी की मानसिकता दिखने लगी है।

लेखक इरशाद खान द्वारा सिकंदर के भावनात्मक रूप से लिखे इस नाटक में हास्य का पुट भी देखने को मिलता है। नाटक की एक विशेषता यह है कि यह काव्य शैली में होने के बावजूद दर्शकों और पाठकों दोनों को बांधे रखने में सक्षम है। इसमें आज की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का भी चित्रण मिलता है।

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इरशाद खान की इससे पहले भी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी रचनाएं जैसे ‘जौन एलिया का जिन’ और ‘अमीरन उमराव अदा’ चर्चित रही हैं।

पुस्तक : ठेके पर मुशाइरा (नाटक) लेखक : इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’ प्रकाशक : राजपाल एण्ड सन्ज, नयी दिल्ली पृष्ठ : 92 मूल्य : रु. 199.

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