मानवीय संवेदनाएं और सामाजिक यथार्थ
‘कुछ दुख इतने निजी होते हैं कि उन्हें व्यक्ति विशेष ही जानता है। उस पीड़ा से किसी और को कोई मतलब, कोई सरोकार नहीं होता, और न ही आप उसे किसी से बांट सकते हैं।’
‘डॉ. अनिता सुरभि’ के कथा संग्रह ‘फूल सहजन के’ से उद्धृत ये पंक्तियां मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक यथार्थ को फूलों की तरह समाहित किए हुए हैं।
दस विभिन्न कथाओं से बुना गया यह संग्रह हिन्दी साहित्य की एक अनुपम कृति है, जिसमें अपने ही अपनों से आहत, किन्तु जिजीविषा और स्वाभिमान से परिपूर्ण बुज़ुर्ग हैं, जो ‘बस अब नहीं कहकर स्वयं के लिए जीना सीखते हैं। ‘एक रिश्ता ऐसा भी’ कहानी समाज के लिए एक सशक्त संदेश है, जिसमें धर्म की दीवारें पार कर भाई-बहन आत्मीयता का रिश्ता निभाते हैं।
‘स्मृतियों के खंडहर’ एक मार्मिक कथा है, जिसमें 1947 के बंटवारे में पाकिस्तान पहुंचा एक बच्चा, जब जवान और सक्षम होकर अपने देश लौटता है, तो खोए हुए परिजनों को समक्ष पाकर भी उन्हें स्वीकार नहीं कर पाता, और अतीत की स्मृतियों को अपने हृदय में दफन कर लौट जाता है।
‘अम्मा जी’ की नायिका गुस्सैल भी है और मुंहफट भी। पति-पत्नी की नोकझोंक से परिपूर्ण यह कथा पाठकों को गुदगुदाती है।
‘मृगतृष्णा’ में लेखिका ने बड़े सहज ढंग से प्यार के नाम पर होने वाले धोखे को रेखांकित किया है। ‘सोमती’ अपने पिता के कुत्सित इरादों को भांप कर हथियार उठा लेती है तो उसकी ‘मां’ एक शेरनी की भांति उसका इल्ज़ाम अपने सिर ले लेती है। अत्याचार का विरोध करने वाली मां-बेटी की यह कथा पाठकों को भीतर तक झकझोर देती है।
लेकिन कुछ ‘पुष्पिता’ जैसी बेटियां गरीबी के कारण बूढ़ों से ब्याह दी जाती हैं और क्रूर बूढ़े उन्हें जलकर मरने के लिए मजबूर कर देते हैं। ‘जब इंसान चला जाता है—चाहे दुनिया से या हमारे जीवन से— तो उसके साथ बिताए हुए समय की परछाइयां, आहटें और सिलवटें ही हमारे साथ रह जाती हैं।’ यह पंक्ति ‘परछाइयां’ कहानी की मूल संवेदना को व्यक्त करती है, जिसमें विदेश में बसे निर्मोही पुत्र और जीवनसंगिनी के विरह को लेखिका ने बड़े ही सुंदर और सार्थक ढंग से उकेरा है।
सभी वर्गों के पाठकों के लिए ‘सहज, ग्राह्य भाषा’ में लिखी गई ये कहानियां ‘पठनीय और संग्रहणीय’ हैं।
पुस्तक : फूल सहजन के लेखिका : डॉ. अनिता ‘सुरभि’ प्रकाशक : आधारशिला प्रकाशन, चंडीगढ़ पृष्ठ : 84 मूल्य : रु. 350.