त्वरित परिवर्तनीय युग में लंबी कहानी का लिखा जाना एक बड़ी उपलब्धि है, उस पर कहानी यदि हाशिए पर धकेल दिए गए इंसान की हो तो पाठक के मन को भी उद्वेलित करती है। कवि, कथाकार, फिल्मकार देवी प्रसाद मिश्र का कथा संग्रह ‘कोई है जो’ छह कहानियों से सुसज्जित है। आत्मकथात्मक शैली में लिखी गईं ये कहानियां बर्बरता-तनाव से क्षतविक्षत समाज में डर और संशय से त्रस्त व्यक्ति की दुश्चिंताओं का बखूबी वर्णन करती हैं। नदी के प्रवाह से निकलती धाराओं के समान कहानी के बीच से प्रस्फुटित हुई कहानियां इंसान की थरथराहट को शब्दों में पिरोती हुई कपोल–कल्पित न्यायसम्मत, विवेकसम्मत, समतामूलक व्यवस्था के सामने सवाल खड़े करती हैं।
‘मैंने पता नहीं कितनी तेज़ या धीरे–से दरवाज़ा खटखटाया’—नदी के पुल पर पिता की तलाश में भटकता नायक न जाने कितनी ही ज़िंदा व मुर्दा लाशों का गवाह हो जाता है।’ ‘अन्य कहानियां और हेलमेट’ में मध्यम वर्गीय आदमी के डर परिलक्षित हुए हैं, जिन्हें ओवरकोट और हेलमेट से ढांपने की नाकाम कोशिश की जाती है। ‘कोई है जो’ कहानी उजास की तलाश में भटकते इंसान अपने नैतिक पुनर्वास की शुरुआत करना चाहता है।
‘भस्म’ एेषणाओं और कामनाओं के हनन से आहत कवि की मनोदशा का कैनवास है। ‘सुलेमान कहां है’ में बूढ़े बाबा के जरिये गांवों में पसरी वीरानी व गुंडई का भी बड़े सटीक शब्दों में वर्णन है। कच्ची अमिया जैसी खट्टी-मीठी बोली सकपकाती भी है, गुदगुदाती भी। देवी प्रसाद जी अंधेरे की छायाओं को विचलित करने वाली मर्म–कथाएं कहते हैं, लेकिन उनके पात्रों में प्रतिरोध की अमिट रोशनी विद्यमान रहती है।
पुस्तक : कोई है जो लेखक : देवी प्रसाद मिश्र प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 176 मूल्य : रु. 299.