मनमोहन सहगल
मिश्री उर्फ शिरीन एक ऐसी मुसलमान लड़की की कहानी है जो व्रज प्रदेश में जन्मी-पली होने के कारण हिंदू संस्कारों में अनुप्राणित है और मूलत: अपने नाम को सार्थक करती है। मिश्री की सार्थकता मिठास घोलने में है और उपन्यास की किरदार मिश्री के आद्यंत दूसरों को सुख की मिठास बांटने, स्वयं घुलकर दूसरों के मुख में मीठापन रचाने-बसाने का काम करने एवं स्वयं दुःख उठाकर अन्यों को जीवन देने की महनीयता से उसका पूरा कथानक महकता है। ब्रज की भाष्ाा कुछ चरित्रों के मुख से ऐसी जंची है कि मुस्लिम पात्र भी व्रज के इष्ट में समा गए प्रतीत होते हैं। मन्दिर के पुजारी पंडित देवकी नन्दन गोस्वामी के पौत्र माधव उर्फ लड्डू गोपाल मिश्री से चार वर्ष छोटे हैं। मिश्री लड्डू से स्नेह करती है। लड्डू को चोट लगे और अतिरिक्त रक्तस्राव हो तो उसे खून देने का पुण्य मिश्री को लेना है, और लड्डू का गुर्दा संक्रमित हो तो मिश्री किडनी डोनेट करके लड्डू की प्राण रक्षा करे, ये घटनाएं मिश्री के नाम को सार्थक करती हैं। मिश्री को विनिमय में कुछ नहीं चाहिए। लड्डू के लिए वह स्नेह के मोल के रूप में सर्वस्व त्याग सकती है, कलेक्टर पद पर कार्यरत मिश्री लड्डू के लिए कुछ भी करती है- यह नाता राधा-मोहन की याद दिलाता है। रसूल खां शास्त्री व्रज के भक्तजनों के परिवार की मिश्री के लिए मुसलमान होने का प्रश्न ‘जय श्रीकृष्ण’ के सम्बोधन मात्र से अनावश्यक हो जाता है।
उपन्यास के लगभग सभी चरित्र व्रज प्रदेश के ही हैं- बीच में लन्दन जाना-आना तथा अंग्रेज लड़की रेमी का पण्डित परिवार की बहू बनना, तलाक लेना एवं पुनः दूसरी अंग्रेज़ लड़की लुईसा, जो श्रीकृष्ण भक्त है, से लड्डू का विवाह आदि घटनाओं से लेखक ने हिन्दू-मुस्लिम, ईसाई किरदारों में सम्बन्ध तथा प्यार दिखाने के प्रयास से एकता का आदर्श खड़ा किया है। हिन्दू-मुस्लिम में रक्त की सांझ दिखाकर लेखक ने खून की लालिमा को सलाम किया है वह चाहे हिन्दू में संचरित हो या मुसलमान में। उपन्यास का विकास आद्यंत नाटकीय है, लेखक के संवादों की निर्मिति अति प्रभावी हुई है।
मिश्री को सतत लड्डू की ढाल के रूप चित्रित करने पर व्रज प्रदेश में हिंदू-मुसलमान दोनों के लिए राधा-कृष्ण इष्ट रूप समाहत दिखाये गए हैं। लड्डू का कोई भी संकट मिश्री को संकटमोचक की भूमिका में ले आता है। लेखक का साम्प्रदायिक एकता का लक्ष्य, आधुनिक मिश्री का एकतरफा समर्पण और कथा का मूलाधार मिश्री के नाम से ही पहचाना जाता है।
लेखक वाजपेयी ने एक सूक्ष्म-सा दावा किया है कि इतिहास के किरदार प्राय: रहस्यमयी ढंग से ऐतिहासिक कथाओं के भावलोक में अनजाने ही उभर कर हमारे वर्तमान में हिलने-मिलने वाले लोगों में कहीं अपनी उपस्थिति दर्ज करवा देते हैं। लेखक का संकेत यह भी है कि मिश्री और लड्डूगोपाल में पारस्परिक सेवा, स्नेह, समर्पण और त्याग प्राचीन पात्र श्रीराधाजी तथा श्रीकृष्ण की पौराणिकता में से उभरते हुए प्रतीत होते हैं। जिस तरह लड्डू रेमी को छोड़ कर लुईसा की ओर आकर्षित होता है, वह श्रीकृष्ण का भक्त के प्रति आत्म प्रसार कहा जा सकता है। लड्डू और मिश्री की पढ़ाई- लिखाई और उन्नति परिश्रम का महत्व दर्शाती है।
उपन्यास ‘मिश्री’ लघु कलेवर, नाटकीय तेवर और पावन प्रेम का सुयोग्य समन्वय है। व्रजभाषा और खड़ीबोली की खट्टी-मीठी चाट का अपना ही स्वाद है।
पुस्तक : मिश्री लेखक : अनूप वाजपेयी प्रकाशक : प्रभात पेपरबैक्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 111 मूल्य : रु. 200.