राजेन्द्र बड़गूजर
भारत में दलित चिंतन की अनवरत परंपरा रही है जो मक्खली गोशाल, रैदास, कबीर से होती हुई वर्तमान में कांशीराम तक आई है। युवराज कुमार द्वारा संपादित ‘भारतीय दलित चिंतक’ पुस्तक कई मायनो में एक महत्वपूर्ण एवं संग्रहणीय पुस्तक है। इस पुस्तक में उन्होंने 12 दलित चिंतकों के जीवन परिचय के साथ-साथ उनकी कार्यशैली और उसके भारतीय समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को बहुत ही सारगर्भित और यथार्थ रूप मे दर्शाया है। ये 12 महापुरुष हैं—संत रविदास, गुरु घासीदास, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, पंडिता रमाबाई, स्वामी अछूतानंद हरिहर, ई.वी. रामास्वामी पेरियार, डॉ. बी.आर. अंबेडकर, महात्मा अय्यंकाली, जोगेन्द्रनाथ मंडल, बाबू जगजीवनराम और कांशीराम।
देश की आजादी के इतने वर्षों बाद भी दलितों को घोड़ी पर नहीं चढ़ने दिया जा रहा या उनकी प्रतिभा को कुंठित कर दिया जाता है। आज भी उसके लिए अवसरों के लाले पड़े रहते हैं। जातिवाद कीड़ी की चाल से बदल रहा है। ऐसे समय में यह पुस्तक आना सुखद है।
हैरानी की बात है कि दलित चिंतकों की शृंखलाबद्ध अनवरतता के बावजूद दलितों की स्थितियां सुधरी क्यूं नहीं? धारा के विपरीत बहने का सभी दलित चिंतकों ने अपने जीवनकाल में भरपूर प्रयास किया। परंतु उनकी वैयक्तिक जिजीविषा के बाद उनकी शिद्दत कायम न रह सकी। इसके अनेक कारण हैं। यह पुस्तक इन्हीं कारणों का दिग्दर्शन कराती है।
‘भारतीय दलित चिंतक’ पुस्तक को पढ़कर यह भी लगता है कि जाति-वर्णगत भेदभाव पूरे भारत में विद्यमान है और पूरे भारत में इसे समाप्त करने के लिए समय-समय पर अलग-अलग क्षेत्रों में अनेक महापुरुष पैदा हुए हैं। संपादक ने बहुत ही शिद्दत से पुस्तक का संपादन किया है, परंतु कुछ महत्वपूर्ण नाम छूट गए हैं। मसलन, मक्खली गोशाल, कबीर, संत पीरो, बाबू मंगूराम मुंगोवालिया आदि।
पुस्तक में सभी लेखकों ने सभी दलित चिंतकों का विश्लेषण, जीवन वृत्त एवं कार्यक्षेत्र का बहुत की सटीक, सरल और सामान्य भाषा में वर्णन किया है जो इस पुस्तक की ताकत बन गई है।
पुस्तक : भारतीय दलित चिंतक : संपादक : युवराज कुमार प्रकाशक : सेज पब्लिकेशन्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 312 मूल्य : रु.1250.