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साहित्य इतिहास में विखंडन और नवसृजन

पुस्तक समीक्षा

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‘नव काल विभाजन’ पुस्तक में विनोद शाही हिंदी साहित्य के काल विभाजन पर पुनर्विचार करते हुए इतिहास के पुराने नक्शे पर सवाल उठाते हैं। वे यह पूछते हैं कि क्या हमारे पुरखों द्वारा खींचा गया इतिहास और उस पर आधारित साहित्य का विभाजन सही था? शाही का तात्पर्य है कि साहित्य के इतिहास के इस नक्शे में अंतर्विरोध हैं और उसे नए दृष्टिकोण से देखने और बदलाव की आवश्यकता है।

‘नव काल विभाजन’ पुस्तक हिंदी साहित्य के काल-विभाजन से आगे बढ़कर समग्र साहित्य इतिहास लेखन पर सवाल उठाती है। विनोद शाही, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी और नामवर सिंह की धारणाओं की आलोचना करते हुए, वे साहित्य इतिहास के पारंपरिक नक्शे को चुनौती देते हैं। शाही का उद्देश्य एक नया साहित्य इतिहास रचना है, जिसमें ‘औपनिवेशिक आधुनिकता’ और ‘उत्तर औपनिवेशिकता’ जैसे विचारों की प्रमुख भूमिका है। उनकी दृष्टि न केवल विखंडन को दर्शाती है, बल्कि साहित्य इतिहास के नवसृजन की दिशा भी दिखाती है।

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रामचंद्र शुक्ल की इतिहास दृष्टि में बुनियादी अंतर्विरोध यह है कि उन्होंने साहित्य को ‘शिक्षित मध्यवर्ग’ की विचारधारा से जोड़ा। शुक्ल के अनुसार, इतिहास ‘शिक्षित जनता की चित्त वृत्तियों का आईना’ होता है और यह शिक्षित जन मध्यवर्ग की सांकेतिक अभिव्यक्ति करता है। इस दृष्टिकोण के कारण शुक्ल के लिए सिद्ध, नाथ, योगी, अवधूत और निरगुन कवि ‘अशिक्षित’ और ‘संप्रदायिक’ दिखाई देते हैं। इस प्रकार, मुख्यधारा का इतिहास लेखन हाशिये के लेखन के बीच गहरी विभाजन रेखा खींचता है।

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विनोद शाही स्वीकार करते हैं कि आरंभिक साहित्येतिहास शिक्षित-मध्यवर्गीय विचारधारा पर आधारित था। वे ‘हिंदी साहित्य का उत्तर औपनिवेशिक इतिहास’ लिखने के न केवल विकल्प तलाशते हैं, बल्कि इस दिशा में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए हिंदी की चिंतन परंपरा में एक नया अध्याय जोड़ते हैं। शाही यह महत्वपूर्ण बिंदु उठाते हैं कि गोरखनाथ और अमीर खुसरो के माध्यम से भारत में एक नई जुबान और सोच की शुरुआत होती है, जो साहित्येतिहास की वास्तविक ज़मीन को खोजना संभव बनाती है।

लेखक का मुख्य तर्क है कि हमें प्रवृत्तियों का नहीं, रचनाशीलता का इतिहास लिखना होगा। यह काम ‘पराई औपनिवेशिक इतिहास-दृष्टि’ से नहीं बल्कि ‘हिंदी संस्कृति के जन आंदोलन’ से जोड़कर देखना होगा।

पुस्तक : नव काल विभाजन लेखक : विनोद शाही प्रकाशक : आधार प्रकाशन, पंचकूला पृष्ठ : 150 मूल्य : रु. 250.

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