विस्मृत इतिहास और नया विकल्प
केवल तिवारी
‘शूद्र : एक नये पथ की परिकल्पना’ वर्ण व्यवस्था, उसके दुष्प्रभावों और शूद्रों की वर्तमान स्थिति पर केंद्रित एक शोधपरक पुस्तक है।
पुस्तक में देश के जाने-माने लेखकों के महत्वपूर्ण आलेख शामिल हैं। कांचा ईलैय्या शेफर्ड और कार्तिक राजा करुप्पुसामी के संपादन में तैयार इस पुस्तक में ‘शूद्र’ शब्द की उत्पत्ति से लेकर आज तक की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति पर विस्तृत विवेचन किया गया है। अनुवाद हिमांशी यादव और रौनक सिंह द्वारा किया गया है।
विभिन्न संदर्भों के माध्यम से इस विषय को सशक्त ढंग से उठाते हुए, इसमें सियासी चालों से संबंधित पहलुओं को भी सामने लाया गया है। कुछ लेखकों का यह मानना है कि हिंदुत्व की राजनीति शूद्रों के लिए अत्यंत घातक सिद्ध हो सकती है। कुल 11 अध्यायों वाली इस पुस्तक की भूमिकाएं भी अत्यंत सशक्त हैं। भूमिका न केवल संपादकों द्वारा लिखी गई है, बल्कि अनुवादकों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। यह पुस्तक ‘भारत : एक पुनर्विचार शृंखला’ के अंतर्गत प्रकाशित की गई है, जो कुल 14 पुस्तकों की शृंखला है, और इसमें वरिष्ठ लेखकों की रचनाओं का संयोजन किया गया है।
आलोच्य पुस्तक में शूद्रों की वस्तुस्थिति पर विचार करते हुए लेखकों ने भविष्य की संभावनाओं और वैकल्पिक मार्गों की ओर संकेत भी किया है। महान समाज सुधारकों—डॉ. भीमराव अंबेडकर और ज्योतिबा फुले—के उद्धरणों को भी आलेखों में स्थान दिया गया है, जिससे पुस्तक की गहराई और प्रामाणिकता और बढ़ जाती है। पुस्तक में शूद्रों की सामाजिक स्थिति के साथ-साथ उनकी आर्थिक स्थिति को भी आंकड़ों के माध्यम से स्पष्ट किया गया है।
पुस्तक : शूद्र : एक नये पथ की परिकल्पना संपादन : कांचा ईलैय्या शेफर्ड और कार्तिक राजा करुप्पुसामी अनुवाद : हिमांशी यादव और रौनक सिंह प्रकाशक : राजपाल प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 230 मूल्य : रु. 450.