शील कौशिक
सूर्य की पहली किरण के साथ जिंदगी का फलसफा शुरू होता है और जिंदगी का इंद्रधनुषी चेहरा दिखाई पड़ता है, जिसमें हर दिन एक नया अनुभव, नई घटना, नया विश्वास, नई प्रेरणा, नई ऊर्जा और नई पीड़ा होती है। समय-समय पर इन से संबंधित संवेदनाओं ने जब-जब कवियत्री के मन का द्वार खटखटाया तो भावोद्वेलन के फलस्वरुप प्रस्तुत संग्रह की इन ‘बहुरंगी’ कविताओं का जन्म हुआ।
जीवन अनुभवों से उपजी इन कविताओं में शिल्प के स्तर पर विविध रंगी काव्य रूप के दर्शन होते हैं, जिनमें क्षणिका से लेकर 14 पृष्ठ की लंबी कविता छंदमुक्त कविता ‘यदि’ भी है। छंद युक्त कविताओं में दोहे, मुक्तक, गीत और ग़ज़ल के शेर हैं।
कवियत्री का जीवन लगता है जैसे संघर्ष की गाथा हो। अपनी ‘आत्म कहानी’ कविता में वह कहती है ‘उस दीपक-सा जीवन मेरा/ जलने में जिसको परितोष/ एक जलन ही आत्म कहानी/ दहकते जाना ही संतोष।’ आशा का संचार करती यह पंक्तियां यहां द्रष्टव्य हैं ‘गीली हैं शाखाएं अब तक/ झरे हैं केवल सूखे पात/ अमां निशा है तो क्या साथी/ चमकेगी तारों की रात।’
माता-पिता का स्मरण करते हुए कवयित्री बचपन में लौटकर उन पलों को याद करती है, जब पहली बार रोटी बनाने पर उसके अंदर विश्वास और हौसले का बीज बोया गया था। समग्रत: जीवन के रंगों का कॉलेज है ‘बहुरंगी’ काव्य-संग्रह, जिसमें भावनाओं का ज्वार है, सामाजिक प्रतिबद्धता है।
पुस्तक : बहुरंगी कवियत्री : डॉ. शशि मंगल प्रकाशक : साहित्यकार, जयपुर पृष्ठ : 118 मूल्य : रु. 200.