महीन रेशों में गुंथे अहसास
शशि सिंघल
साहित्य जगत को लगभग दस काव्य-संग्रहों और एक लघुकथा-संग्रह से समृद्ध करने के बाद अब आशमा कौल ने कहानी की दुनिया में कदम रखा है। जब मन की भावनाओं और प्रतिक्रियाओं को कविता या लघुकथा के दायरे में अभिव्यक्त करना कठिन हो जाता है, तब वे स्वतः ही कहानी का रूप ले लेती हैं। ‘रिश्तों के महीन रेशे’ आशमा कौल का पहला कहानी-संग्रह है। दुनिया की हर मां को समर्पित यह संग्रह क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं की ऐसी शृंखला है, जो पाठकों को शुरू से अंत तक बांधे रखती है।
इस संग्रह में कुल चौबीस कहानियां हैं। इन सभी का कलेवर छोटा है—अधिकतर दो से तीन पृष्ठों में सिमटी हुई हैं—इसलिए इन्हें लघुकथाएं कहना उचित होगा। यह तथ्य निर्विवाद है कि हम जीवन में अकेले आते हैं और अकेले ही चले जाते हैं, परंतु इस आने-जाने के मध्य हम अनेक रिश्तों से जुड़ते हैं, उन्हीं में पलते-बढ़ते हैं। ये रिश्ते हमें जीवन में संबल और उद्देश्य देते हैं। कठिन परिस्थितियों में ये ही हमें टूटने-बिखरने से बचाते हैं।
हालांकि हर रिश्ता विशेष होता है, परंतु मां का रिश्ता सर्वोपरि होता है। इस संग्रह की कहानियां—‘आंखें हो’, ‘यात्रा’, ‘गृहस्थी’, ‘अम्मा का रूठना’, ‘नियत’, ‘बड़ी बहू कमला’, ‘समय का खेल’, ‘प्यारी की अरदास’, ‘प्रायश्चित’, ‘यादों के अनमोल दस्तावेज़’, ‘धूप का टुकड़ा’ आदि—सभी में मां कहीं न कहीं केंद्र में है।
इन कहानियों में स्त्री-विमर्श, परिवार में स्त्रियों की स्थिति, बच्चों का उनके प्रति व्यवहार, स्त्रियों की सहनशीलता, अंतर्मन की पीड़ा और उनके जीवन की कसक को सजीवता से चित्रित किया गया है। यह एक कटु सत्य है कि आज भी अधिकांश घरों में स्त्रियां इन्हीं परिस्थितियों का सामना कर रही हैं।
‘समय का खेल’ कहानी में पुरुष के दंभ को तोड़ते हुए उसे सच का आईना दिखाया गया है। सहनशीलता की भी एक सीमा होती है—जब वह टूटती है, तो परिणाम घातक हो सकते हैं। शिक्षित या अशिक्षित कोई भी स्त्री जब पुरुष के अहम का शिकार होती है, तब उसके भीतर की नारी चेतना जागृत हो जाती है, जो उसके आत्मबल और आत्मसम्मान की पहचान बनती है।
कहानीकार के रूप में आशमा कौल का यह प्रथम प्रयास निश्चय ही सराहनीय है। इन कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि यह केवल किसी और की नहीं, हमारी अपनी ही कहानी है—जैसे हम अपनी मां से बातें कर रहे हों। भाषा सहज, सरल और भावप्रवण है, जो आम पाठकों के मन में गहराई से उतर जाती है।
पुस्तक : रिश्तों के महीन रेशे कहानीकार : आशमा क़ौल प्रकाशक : इंडिया नेटबुक्स, प्रा.लि. नोएडा पृष्ठ : 110 मूल्य : रु. 250.