रतन चंद ‘रत्नेश’
साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय विधा लघुकथा के मौलिक गुण, संप्रेषणीयता, प्रभावोत्पादकता और उनमें निहित पठनीयता को जिन कथाकारों ने अक्षुण्ण बनाए रखा है, उनमें रूप देवगुण का नाम अग्रणी है। ज्ञानप्रकाश ‘पीयूष’ ने उनकी चुनिंदा लघुकथाओं में यथार्थ, आदर्श और आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद पर पैनी दृष्टि डालकर इनमें से 82 लघुकथाओं को संगृहीत कर इन्हें पुस्तकाकार दिया है।
ये सूक्ष्म कथाएं बड़ी सूक्ष्मता से देश व समाज में व्याप्त विडंबनाओं, विसंगतियों तथा अनियमितताओं को उजागर करती हैं, चाहे वह पारिवारिक स्वार्थपूर्ण रवैया हो, बुजुर्गों की अवहेलना या फिर शिक्षण-संस्थाओं में बढ़ता भ्रष्टाचार। आम आदमी की रोजमर्रा की समस्याएं, सरकारी संस्थानों में रिश्वतखोरी, नारी-प्रताड़ना, जनसंख्या विस्फोट, बेरोजगारी, बेढंगे रीति-रिवाज आदि पर केंद्रित इन संकलित लघुकथाओं में पाठकों को झकझोरने का प्रयास साफ दिखता है। उदाहरण के तौर पर बेरोजगारी से उपजी पीड़ा अपमान की पीड़ा से कई गुणा अधिक होती है (पीड़ा)।
इसी तरह ‘मजबूरी’ में दिवाली के दिन भी छुट्टी न लेने वाले दिहाड़ीदार मजदूर की विवशता बयां हुई है। शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त धांधलियों को ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’, ‘स्थिति डांवांडोल’, ‘गुरु’, ‘अनुशंसित पत्र’, ‘लक्ष्मी’, ‘पूरे पैसे’ आदि में बखूबी दर्शाया गया है। कुल मिलाकर, कहना गलत नहीं होगा कि एक कथाकार ने अन्य एक वरिष्ठ की लघुकथाओं में यथार्थ व आदर्श की सही पहचान की है।
पुस्तक : रूप देवगुण की लघुकथाओं में यथार्थ व आदर्श लेखक : ज्ञानप्रकाश ‘पीयूष’ प्रकाशक : मोनिका प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 400.