मोहन मैत्रेय
हिंदी में अधिकांश बाल-साहित्य शिशु गीत, बाल गीत, पहेलियों, पद्यकथाओं एवं लोरियों के रूप में उपलब्ध है। हरियाणा के साहित्यकार सत्यवीर नाहड़िया ने पंचतत्व की पीर दिवस खास त्योहार के अनन्तर ‘रचा नया इतिहास’ के रूप में दोहों के माध्यम से इस साहित्य को नव आयाम प्रदान किए हैं।
दोहे के माध्यम से भाव-व्यंजना सरल कार्य नहीं। दोहों में कवित-सवैयों की भांति झंकार के दर्शन तो नहीं होते परंतु इनमें संक्षेप तथा शब्द लाघव अपनी अलग पहचान रखते हैं। सतसई (सप्तशती) की परंपरा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी के पहले भी विद्यमान थी। बिहारी के दोहों से संबंधित एक उक्ति प्रचलित है :-
सतसैया के दोहरे, ज्यों नाव के तीर।
देखन को छोटे लगैं, घाव करैं गंभीर।
प्रस्तुत रचना में नेता जी सुभाष चंद्र बोस संबंधी उक्त कथन का समर्थन करता है :-
नेता अब पग-पग खड़े, नहीं एक भी खास।
असली नेता देश के, थे बस वीर सुभाष।
प्रस्तुत संग्रह में देशभक्तों, सेनानियों, राजनेताओं, धर्म-गुरुओं, वैज्ञानिकों, खिलाड़ियों साहित्य धर्मियों आदि विषयक 61 संदर्भ हैं तथा प्रत्येक में पांच दोहे हैं। आज राजनेता रामराज की दुहाई देते हैं। यह तो जनहित में निहित था :-
जनहित में ऐसे किए, अलग अनूठे काज,
मुहावरा है बन गया, ‘रामराज’ यह आज।
गुरु गोबिंद सिंह बहुमुखी व्यक्तित्व के स्वामी थे :-
योद्धा भी वे खूब थे, कविवर उससे खास।
संत-सिपाही ने रचा, एक नया इतिहास।
महात्मा गांधी का अहिंसात्मक आंदोलन अपनी ही मिसाल था :-
सत्य-अहिंसा सादगी, थे उनके हथियार।
बापू गोरो से लड़े, बिना तोप-तलवार।
लाल बहादुर शास्त्री के वैचारिक आयाम भी विशेष थे :-
छोटा कद कारज बड़े, जाने देश तमाम।
सादे जीवन से रचे, वैचारिक आयाम।
शहीद भगत सिंह क्रांतिकारी वीर तो थे ही, अद्भुत कलमकार भी थे :-
खूब चलायी लेखनी, खूब दिया बलिदान।
भूल कभी सकता नहीं, तुमको हिंदुस्तान।
पं. जवाहर लाल नेहरू की कार्यशैली पर कई प्रश्न उठाए जाते हैं, परंतु यह एक तथ्य है कि दुनिया भर में उनकी खास पहचान थी :-
दुनिया भर में मान था, मिली खास पहचान।
दौर गुलामी बाद था, नव भारत का ध्यान।
छायावादी युग की विशेष विभूति महादेवी आज की मीरा थी :-
दर्द ढाला जब छंद में, गया कलेजा चीर।
मीरा थी वो आज की, गायी मन से पीर।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम धार्मिक समभाव तथा धर्म-निरपेक्षता की अनुपम मिसाल थे :-
हिंदू-मुस्लिम से कहीं, बड़े एक इंसान।
जीवन भर पढ़ते रहे, गीता संग कुरान।
‘रचा नया इतिहास – भाव बड़े, आखिर थोड़े’ का अनुपम उपहार है। बच्चों के लिए यह अनुपम ज्ञानदायिनी कृति है।
पुस्तक : रचा नया इतिहास दोहाकार : सत्यवीर नाहड़िया प्रकाशक : समदर्शी प्रकाशन, मेरठ पृष्ठ : 74 मूल्य : रु. 100.
हिमाचल के बाल साहित्य की बानगी
घमंडीलाल अग्रवाल
कविता, कहानी, फीचर एवं बाल साहित्य जैसी विधाओं से हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाले साहित्यकार पवन चौहान की नवीनतम कृति है ‘हिमाचल का बाल साहित्य।’ इसमें हिमाचल प्रदेश के समग्र बाल साहित्य को खूबसूरती से रेखांकित किया गया है। कृति से स्पष्ट होता है कि हिमाचल प्रदेश में भी बाल साहित्य लेखन की परंपरा अत्यंत प्राचीन है।
कृति के प्रारंभ में हिमाचल प्रदेश के बाल साहित्य की विकास यात्रा पर प्रकाश डाला गया है। बताया गया है कि इससे पूर्व आज तक यहां का बाल साहित्य पूरी तरह पाठकों के समक्ष कभी नहीं लाया गया था। पवन चौहान ने इस चुप्पी को तोड़ने का प्रशंसनीय प्रयास किया है। वास्तव में हिमाचल प्रदेश में बाल साहित्य के बीज सन् 1950 में डाल दिये गये थे। इस दौरान यहां पर बाल कविता, बाल कथा, बाल नाटक व बाल उपन्यास बहुतायत में लिखे गये। संतराम वत्स्य तथा डॉ. मस्तराम कपूर यहां के शुरुआती दौर के बाल साहित्यकारों में अग्रणी हैं। हिमाचल की बाल साहित्य विकास यात्रा को तीन चरणों में कलमबद्ध किया गया है—प्रारंभिक काल (1950-1975), स्वर्णिम काल (1975-2000) तथा उत्तर स्वर्णिम काल (2000-अब तक)। संभवत: यह प्रथम कृति है, जिसमें हिमाचल का बाल साहित्य दिखता है।
विस्तार की दृष्टि से कृति को दो खंडों में विभक्त किया गया है—गद्य खंड एवं पद्य खंड। गद्य खंड में डॉ. अदिति गुलेरी, अमर सिंह ‘शील’, अमरदेव अंगिरस, अनंत आलोक, आशा शैली, डॉ. गंगाराम राजी, गिरीश हरनोट, गुरमीत बेदी, हरदेव सिंह धीमान, हेमकांत कात्यायन, कंचन शर्मा, कृष्ण चंद्र महादेविया, महर्षि गिरिधर योगेश्वर, डॉ. मनोहरलाल, डॉ. मस्तराम कपूर, पवन चौहान, प्रभात कुमार, प्रतिभा शर्मा, डॉ. प्रत्यूष गुलेरी, प्रेमलता वात्स्यायन, डॉ. राममूर्ति वासुदेव प्रशांत, रूपेश्वरी शर्मा, सैन्नी अशेष, संतोष शैलजा, संतराम वत्स्य, शेर सिंह, सुदर्शन वशिष्ठ, डॉ. सुशील कुमार फुल्ल तथा त्रिलोक मेहरा की बाल कहानियां व उपन्यास अंश हैं। वहीं पद्य खंड में डॉ. गौतम शर्मा ‘व्यथित’, कृष्णा अवस्थी, कृष्णा ठाकुर, मामराज शर्मा, मोती लाल घई, डॉ. नलिनी विभा ‘नाजली’, डॉ. पीयूष गुलेरी, राजीव कुमार ‘त्रिगर्ती’, राजेंद्र पालमपुरी, रामप्रसाद शर्मा ‘प्रसाद’, रमेश चंद्र शर्मा एवं रतन चंद ‘रत्नेश’ की बाल कविताएं रखी गयी हैं। अंत में कुछ अन्य बाल साहित्य लेखकों के नामों का भी उल्लेख हुआ है।
इस कृति की कई विशेषताएं हैं। सम्मिलित समस्त रचनाकारों के व्यक्तित्व व कृतित्व का उल्लेख है। पुराने व नये रचनाकार एक जगह विराजमान हैं। भाषा-शैली सरल, सरस व बोधगम्य है। यह कृति पाठकों के साथ-साथ शोधार्थियों के लिए भी उपयोगी है।
पुस्तक : हिमाचल का बाल साहित्य लेखक : पवन चौहान प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 184 मूल्य : रु. 250.
हिंदी में पंजाबी कहानियां
मनमोहन गुप्ता मोनी
लेखिका सवित्री चौधरी की हिंदी और पंजाबी पर मजबूत पकड़ है। उन्होंने ‘प्रतिनिधि पंजाबी कहानियां’ पुस्तक का प्रकाशन किया है। इसमें उन्होंने 17 पंजाबी लेखकों की कहानियों का अनुवाद किया है। इसमें डॉक्टर महीप सिंह, रामस्वरूप अणखी, नानक सिंह, करतार सिंह दुग्गल, दिलीप कौर टिवाना आदि ऐसे लेखक हैं जो पंजाबी के साथ-साथ हिंदी में भी उतने ही लोकप्रिय हैं।
पंजाबी कहानी को तो हिंदी पाठक वैसे भी बड़े लगाव से पढ़ता है। स्वर्गीय नानक सिंह की कहानियां पंजाबी साहित्य में बड़े शौक से पढ़ी जाती हैं। इस संकलन में उनकी ‘बड़ा डॉक्टर’ और ‘रब अपने असली रूप में’ कहानियां प्रस्तुत की गई हैं। ‘बड़ा डॉक्टर’ में जीव जंतुओं के प्रति करुणा और ‘रब असली रूप में’ सांप्रदायिक सौहार्द दिखाई देता है।
इसी प्रकार साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता रामस्वरूप अणखी की कहानी ‘जैथा ग्वाला’ में ग्रामीण परिवेश का सटीक चित्रण दिखाई देता है। दिलीप कौर टिवाना भी साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत लेखिका हैं। उनकी चर्चित कहानी ‘वह सोचती’ में दादी के प्रति प्रेम का उन्माद कहानी को पराकाष्ठा तक ले जाता है। सावित्री चौधरी स्वयं भी एक लेखिका हैं। हिंदी, पंजाबी, राजस्थानी, उर्दू भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ है। इस संकलन के लिए उन्होंने जिस संजीदगी से कहानियों का चयन किया है, वह सराहनीय है। पंजाबी रचनााकार शीला गुजराल, इकबाल दीप, रणजीत सिंह भिंडर, गुरमेल मडिहड, हरसिमरन कौर, जसबीर कौर और बंचित कौर की कहानियां इस संकलन में शामिल हैं।
पुस्तक : प्रतिनिधि पंजाबी कहानियां अनुवादक : सावित्री चौधरी प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर पृष्ठ : 105 मूल्य : रु. 200.
शहादत का ऐतिहासिक दस्तावेज
केवल तिवारी
अमृतसर के जलियांवाला बाग में बर्बरता दिखाकर भारत में ब्रिटिश हुकूमत ने अपनी कब्र खोद ली थी। उस वारदात की पृष्ठभूमि और उसके बाद की परिस्थितयों के कई जाने-अनजाने घटनाक्रमों, नायकों-खलनायकों के बारे में लेखक एमएम जुनेजा ने अपनी हालिया किताब ‘जलियांवाला बाग’ में बताया है।
इतिहासविद् एम.एम. जुनेजा ने अपनी इस किताब में सरल अंदाज में शोधपरक जानकारी के साथ ही कई ऐसे ‘नींव के ईंटों’ के बारे में भी बताया है जिन्हें या तो जान-बूझकर भुला दिया गया या फिर उनके बारे में लोगों को पता ही नहीं। इसके अलावा जलियांवाला बाग ट्रस्ट के भीतर की सियासत पर भी उन्होंने प्रकाश डाला है। अमृतसर की जनता को जागरूक करने वाले डॉ. किचलू व डॉ. सत्यपाल से जुड़ी ऐतिहासिक प्रसंगों की बात हो या फिर सांप्रदायिक सौहार्द का वातावरण, लेखक ने किताब में शोध की तरह क्रमवार तरीके से चीजों को समेटने की कोशिश की है।
जलियांवाला बाग हत्याकांड से तीन दिन पहले सीने में गोली खाते हुए शहीद मोहम्मद तुफैल जिसे ‘थैला कंजर’ कहते थे, का जिक्र भी लेखक ने किया है। असल में यह युवक एक वेश्या की कोख से जन्मा था। इस युवक ने जो बहादुरी दिखाई, वह अकल्पनीय थी। जलियांवाला बाग हत्याकांड के पहले और उसके बाद गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जैसी अनेक हस्तियों द्वारा ब्रिटिश हुकूमत को उसका सम्मान लौटाने का विवरण लेखक ने दिया है।
इसी क्रम में ‘द ट्रिब्यून’ के मुख्य संपादक रहे कालीनाथ रे के लेखों एवं इस हत्याकांड के 100वीं बरसी पर ट्रिब्यून द्वारा जारी किताब का भी जिक्र लेखक ने किया है। महत्वपूर्ण तिथियों एवं कुछ खास चित्रों के साथ लेखक ने एक शोध ग्रंथ की तरह किताब को तैयार किया है जो निस्संदेह पठनीय और संग्रहणीय है।
पुस्तक : जलियांवाला बाग लेखक : एम.एम. जुनेजा प्रकाशक : मॉडर्न पब्लिशर्स, जीरकपुर, मोहाली पृष्ठ : 160 मूल्य : रु. 150.
साइबर ठगी का जाल
शशि सिंघल
साइबर क्राइम, एक ऐसा जघन्य अपराध है, जो झूठ को सच की तरह परोसकर रातोंरात किसी को भी मूर्ख बना सकता है और तबाह भी कर सकता है। तकनीकी क्षेत्र में हमारी प्रगति की देन ये साइबर क्राइम आज खूब फलफूल रहा है।
साहित्यकार एवं राजनीतिज्ञ मुख़्तार नक़वी ने अपने ‘साइबर सुपारी’ नामक उपन्यास में देश-दुनिया में चल रहे साइबर सिंडिकेट, साइबर ठगों के जाल तथा आधुनिक तकनीक के प्रयोग से की जा रही खतरनाक साजिशों का परत-दर-परत बहुत ही गहराई व गंभीरता के साथ रोचक ढंग से उल्लेख किया है। उपन्यास में खुलासा किया है कि मोबाइल, ईमेल एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फेक संदेशों का वीडियो किस तरह सुपारी लेकर तैयार किया जाता है। ये वायरल वीडियो किस तरह किसी भी नेता, धर्मगुरु, संस्था, उद्योगपति, कंपनी, अभिनेता व अभिनेत्री की बखिया उधेड़ कर रख देता है।
किसी भी उत्पादन को घटिया-बढ़िया बताना, किसी भी राजनेता-राजनीतिक दल की बदनामी व नेकनामी की कहानियां गढ़ उनकी छवि बनाना या बिगाड़ना इन लोगों के बाएं हाथ का खेल है। इनके द्वारा फेक न्यूज़, संदेश और वीडियो इतनी चतुराई व चालाकी से तैयार किए जाते हैं कि आमजन इन्हें अपने फैसले का आधार भी बना देते हैं।
‘साइबर सुपारी’ की कहानी आज वास्तविकता के बहुत करीब है। यह उपन्यास साइबर अपराधियों के इस कृत्य के समूचे ताने-बाने को उधेड़ हकीकत से रूबरू कराने के साथ समाज में जागरूकता लाने और लोगों को साइबर ठगी से बचाने में काफी सहायक सिद्ध हो सकेगा।
पुस्तक : साइबर सुपारी लेखक : मुख़्तार नक़वी प्रकाशक : डायमण्ड बुक्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 175.