गोविन्द भारद्वाज
तपिश की ऑनलाइन क्लास चल रही थी। क्लास के बीच में टीचर जी ने कहा, ‘कल परसों का अवकाश रहेगा।’ ‘क्यों सर?’ तपिश ने पूछा। टीचर जी ने कहा, ‘बेटा कल नवमी है और परसों दशमी अर्थात दशहरा।’ ‘सर दशहरे के दिन तो रावण का पुतला फूंका जाता है।’ तपिश ने तुरंत कहा। ‘हां बेटा दशानन का पुतला फूंका जाता है।’ सर ने जवाब दिया। तपिश ने सवाल पर सवाल पूछते हुए कहा, ‘सर रावण को आपने अभी दशानन कहा, ऐसा क्यूं?’ ‘क्योंकि बेटा रावण के दस शीश अर्थात सिर थे, इसलिए।’ टीचर जी ने दशानन का अर्थ बताते हुए कहा। तपिश के मन में फिर नया प्रश्न उठा और पूछा, ‘सर रावण के सचमुच में दस शीश थे क्या?’ ‘बेटा रावण के दस शीश थे या नहीं…इसके लिए तुम्हें रामायण पढ़नी पड़ेगी। किंतु मैं इतना समझता हूं कि आज के युग में रावण के दस शीश दस बुराइयों के प्रतीक हैं। दशहरे का पर्व भी हमें यह संदेश देता है कि प्रत्येक मनुष्य को सदैव इन बुराइयों से बचना चाहिए। समाज से ऐसी बुराइयों को स्वाह कर देना चाहिए।’ ‘कौन-कौन सी बुराइयां सर?’ तपिश ने फिर पूछा। टीचर जी को लगा कि इस बच्चे में बड़ी जिज्ञासा है। इसलिए इसके प्रश्नों के उत्तर देने चाहिए। टीचर जी कहा, बेटा, लोभ, मोह, झूठ, पाप, अहंकार, अत्याचार, अपहरण, कुविचार, दुष्टता, अधर्मिता जैसे भाव जिसके मन में घर कर जाते हैं, उसका अंत निश्चित है। रावण ने इतना बड़ा विद्वान होते हुए भी इन बुराइयों के कारण अपना और अपनी सोने की लंका का पतन करवा लिया। आज के युग में इन बुराइयों ने समाज में घर कर लिया है। हम सबको मिलकर इन बुराइयों को जड़ से मिटाना है। ये बुराइयां जाते ही हमारा समाज और अपना राष्ट्र नये युग में कदम रख सकता है जहां शांति, विकास, समृद्धि, सुख, अहिंसा की पुनः स्थापना होगी।’
अपने टीचर जी से ज्ञानवर्धक व उपयोगी बातें समझकर तपिश ने कहा, ‘सर पहले मेरे अंदर जो बुराई है, उनको दूर करूंगा। इसके बाद अपने परिवार, मोहल्ले और गांव में फैली कुरीतियों को मिटाने का प्रयास करूंगा। सबसे पहले हम सब को अपने भीतर छिपे रावण को जलाना होगा। केवल पुतले जलाने व तालियां बजाने से कुछ नहीं होगा।’
‘अरे वाह तपिश तो बहुत समझदार बच्चा है।’ टीचर जी ने हंसते हुए कहा।