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राजनीतिक विद्रूपताओं का नाट्य रूपांतरण

पुस्तक समीक्षा
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मनमोहन गुप्ता मोनी

‘सबसे बड़ा सवाल’ नाटक में हरिशंकर परसाई ने राजनीतिक द्वंद्व और अलग-अलग पार्टियों के नेताओं द्वारा अपने पक्ष में प्रचार के तरीकों को उजागर किया है। चुनाव में चार पार्टियां हिस्सा ले रही हैं। एक है काली पार्टी, जिसमें काले धन वाले शामिल हैं। दूसरी है सफेद पार्टी, जिसमें साफ-सुथरे लोग तो हैं ही, काले धन वाले भी इसमें भारी चंदा देकर शामिल हो गए हैं। तीसरी पार्टी है पीली पार्टी, जिसका उपद्रव करना मुख्य काम है। इसी तरह एक और पार्टी है विजय पार्टी जिसमें कई तरह के लोग हैं। पुराने क्रांतिकारी, रिटायर्ड अफसर आदि। इस पार्टी में युवा पीढ़ी भी शामिल है। छात्रों का भी राजनीति में दखल साफ दिखाई दे रहा है। हालांकि, मैदान में मुख्य दो ही पार्टियां आमने-सामने हैं। काली पार्टी और सफेद पार्टी। दोनों के नेताओं के जो शब्दों का चयन है वह आजकल की राजनीतिक उठापाठक से काफी मिलता-जुलता है।

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सफेद पार्टी का नेता है सेठ भिखारी दास और काली पार्टी का नेता है सेठ गरीबदास। गरीबदास दवा कारखाने के मालिक हैं, विधवा आश्रम भी चलाते हैं। सबसे बड़ी बात है कि इनके दवा कारखाने में नकली दवा बनती हैं। इस वजह से अनेक लोगों की मौत भी हो चुकी है। जनता इस बात से क्रोधित भी है। दूसरी तरफ सफेद पार्टी के जो नेता भिखारी दास हैं। वह नाम के भिखारी हैं। एक नामी व्यापारी हैं। तेल का कारोबार है। जनता को जब सूचना मिलती है कि भिखारीदास की मिल में जो तेल बनाया जाता है, उससे भी कई लोगों की मौत हो चुकी है। जनता भिखारी दास के खिलाफ हो जाती है। अब दोनों नेता परेशान हैं और आपस से मिलकर एक रास्ता निकालने की कोशिश करते हैं लेकिन सफल नहीं हो पाते। आज के वातावरण के अनुसार बहुत सामयिक दिखाई देता है यह नाटक और दशकों में लोकप्रिय होगा, यह निश्चित है।

पुस्तक : सबसे बड़ा सवाल लेखक : हरिशंकर परसाई प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 128 मूल्य : रु. 199.

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