रश्मि 'कबीरन’
अभी कुछ समय तक
नहीं लिखनी चाहिए कविता
उन सबको—
नहीं है
जिनके शब्दों में
नई फूटती कोंपलों की
पावन हरीतिमा,
सुबह सवेरे वंदन करते
पक्षियों की मृदु चहचहाहट,
भोरकालीन
कोमल रश्मियों की
गुनगुनी गर्माहट,
मासूम बच्चों के होठों पर
खुद-ब-खुद खेलती,
खिलती भोली मुस्कुराहट...
शर-शैय्या पर पड़े
हमारे घायल युग में—
अभी कुछ समय तक
नहीं लिखनी चाहिए
उन सबको कविता,
जिनके शुष्क
दग्ध आकाश में
नहीं घुमड़ते
सजल भाव–घन,
नहीं बरसते
स्नेह की बरखा,
प्रेम का मरहम।
अभी कुछ समय तक
नहीं लिखनी चाहिए
उन सबको
कविता...
अंधेरों से सुपारी
ख़बर है
कि कवि ने अंधेरों से
सुपारी ली है,
खबर है
कि यह सुन उजालों ने
ख़ुदकुशी की है।
फिर एक बार
विजेता कवि
घूम रहा है
मदमदाता दर्प से,
फिर इक बार
हन्ता शब्दकार
बच गया है
उजालों की अनुकम्पा से,
अपराध-बोध के
तीव्र दंश से।
अंधकार नहीं—
उजालों ने
छीना है हमसे
हमारा सूर्य,
और कर डाली है
यह भयावह कालरात्रि—
अनंत अकूत...