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न देखे वो दर्द मेरे

कविता
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आज जो देखते हैं सब,

मेरी चमकीली गाड़ी में सैर,

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महल-सा आलीशान घर,

रेशम के वस्त्र, स्वाद का भोजन—

कभी नहीं देखा उन्होंने,

मेरे नंगे पांव,

धधकती धूप में तपते रास्ते,

भूख की चीखों में रातें गुजारना।

न देखी माँ की फटी साड़ी,

उसका छिपा हुआ आंसुओं का समंदर,

न पिता का बेबस चेहरा,

पैसों की कमी में

बिना इलाज तिल-तिल मरना।

न देखा उन्होंने,

मेरे एक-एक सिक्के का संघर्ष,

पसीने की नदियां,

रातों को तकिए में दबा रोना।

फिर भी आज वही लोग चिल्लाते,

‘कहां से कमाया है, इतना पैसा!’

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