यश गोयल
अंग्रेजी भाषा में किताब : ‘फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ : द मैन एंड हिज टाइम्स’ बहुत पॉपुलर हुई थी। इस किताब को मानेकशॉ के साथ रहे अफसर ब्रिगेडियर (रि.) बेहराम एम. पंथकी और उनकी पत्नी ज़िनोब्या पंथकी ने लिखी थी। अब इसका हिंदी में अनुवाद देश के जाने-माने पत्रकार और लेखक अक्षय कुमार सिंह चौहान ने किया है।
सर्वविदित है कि मानेकशॉ ने सेना प्रमुख (1969-1973) के रूप में 1971 की जंग में भारतीय सेना का नेतृत्व किया था और ऐतिहासिक व अभूतपूर्व जीत हासिल की थी। यह इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में मुद्रित है। किताब एक आत्मकथा नहीं है बल्कि मुख्य रूप से लेखक के उनके एडीसी के रूप में कार्य करने के दौरान फील्ड मार्शल व उनके परिवार से जुड़ाव और व्यक्तिगत रूप से हासिल की गयी जानकारियों के आधार पर लिखी गयी है। पुस्तक सैम के जीवन, व्यवहार की विशेषताओं, विनोद प्रियता, नैतिकता, पेशेवर साहस एवं उन रहस्यों को चित्रित करती है, जिन्होंने उनके व्यक्तित्व को इस प्रकार गढ़ा। उनकी विशेषताओं में विनम्रता, ईमानदारी और पद की परवाह किये बिना सेना के हर व्यक्ति के लिये सम्मान के भाव को दर्शाती है। उनके बचपन से लेकर कीर्ति के शिखर तक का सफर बहुत सूक्ष्मता से लिखा गया है।
किताब में उनके व्यक्तिगत जीवन गाथा के साथ राजनीतिक ताने-बाने, खींचतान को भी रेखांकित किया है जो यह स्थापित करता है कि कैसे एक बेहतरीन सैन्य रणनीतिकार ने भारतीय उपमहाद्वीप का नक्शा ही बदल दिया था। यह किताब इसलिये भी संग्रहणीय है क्योंकि इसमें उनके पारिवारिक पिक्चर्स, हस्तलिखित टिप्पणियां और पर्सनल लैटर्स को भी सुंदरता से ले आउट किया है। दोनों लेखकों ने सहर्ष घोषणा की है कि इस पुस्तक की राॅयल्टी का संपूर्ण हिस्सा ‘वॉर वुंडेड फाउंडेशन’ और ‘वार विडोज एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ को समर्पित किया जायेगा।
सैम का जन्म अमृतसर में 3 अप्रैल, 1914 को एक पारसी परिवार में हुआ था और वह छह बच्चों में पांचवीं संतान थे। सेना में भारतीय कमीशन प्राप्त अधिकारियों के पहले दस्ते में 1 फरवरी, 1935 को सेकंड लेफ्टिनेंट सैम होरमसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ, आईसी-14 में शामिल किया गया। वर्ष 1939 में सैम ने खूबसूरत सिल्लू से शादी की थी। सैम की दो पुत्रियां हुईं, शैरी और माया।
सैम एक एलएमजी की गोलियों का निशाना बने और नौ गोलियां उनके पेट में लगीं, जो उनके फेफड़े, यकृत, गुर्दे और आंतों को छेद गयीं। इलाज और ऑपरेशन के बाद वह स्वस्थ हो गये। सैम मजाक करते थे कि उनका पेट लोहे का बना है, जिसमें जापानियों की गोलियां भी प्रवेश नहीं कर पाई थीं। उन्हें भारतीय सेना और सिविल अवार्ड्स मिले। वर्ष 1979 में सैम को नेपाल के राजा ने ‘त्रिशक्ति पट्टा’ और राजस्थान सरकार ने ‘महाराणा प्रताप पुरस्कार’ से सम्मानित किया। जीवन के आखिरी पड़ाव पर वे अकेले रह गये जब 2001 में उनकी धर्मपत्नी का निधन हो गया। ‘कितने भी ऊंचे पद पर क्यों न पहुंचो, अपने दिल में हमेशा बच्चे की सर्वप्रियता बनाए रखो’, ऐसे उच्च विचार सैम जैसे महान सेनानी के ही हो सकते हैं, जिसे पढ़ा जाना चाहिए।
पुस्तक : फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ : अपने समय का चमकता सितारा लेखक : ब्रिगेडियर (रि.) बेहराम एम. पंथकी और ज़िनोब्या पंथकी प्रकाशक : नियोगी बुक्स, नयी दिल्ली हिंदी अनुवाद : अक्षय कुमार सिंह चौहान पृष्ठ : 206 मूल्य : रु. 895.