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प्रबल इच्छाशक्ति का दस्तावेज

पुस्तक समीक्षा
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सरस्वती रमेश

कई बार बीमारी से लड़ना युद्ध लड़ने जितना कठिन होता है। अगर बीमारी कैंसर हो, तो देह और मन की पीड़ा मौत से भी बड़ी जान पड़ती है। इसी पीड़ा को शब्दों और चित्रों में बयान करती है रति सक्सेना की हाल ही में आई किताब ‘आई.सी.यू. में ताओ’। यह एक कैंसर डायरी है। किताब में लेखिका ने बीमारी से जुड़े अपने अनुभव लिखे हैं। इन अनुभवों में जिंदगी के सार भी छिपे हैं।

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‘मन को भटकने से बचाना है, मन कभी भी बगावत कर सकता है।’ लेखिका कैंसर के मरीज को समुद्र के पक्षी से जोड़ती है, जिसे बार-बार अस्पताल रूपी जहाज पर आ बैठना है।

किताब पढ़ते हुए पाठक को लगता है कि लेखिका के साथ वह स्वयं भी इस जानलेवा बीमारी से लड़ रहा है। अस्पताल के चक्कर, कीमोथेरैपी, रेडियोथेरैपी, इंजेक्शन, दवाइयां और दवाइयों से उपजे दर्द को लेखिका ने इतने संवेदनशील तरीके से लिखा है कि पढ़कर पाठक का मन बेचैन हो उठता है। वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगता है कि यह दर्दनाक बीमारी उसके दुश्मनों को भी न हो।

यह किताब सिर्फ बीमारी का रोज़नामचा नहीं है, यह एक स्त्री की प्रबल इच्छा-शक्ति का भी दस्तावेज़ है, जो इस कठिन समय में भी कलम और कविता का साथ नहीं छोड़ती। बीमारी के दौरान सिर्फ जिंदगी नहीं बदलती, जिंदगी के मायने भी बदल जाते हैं, पर उस बदली हुई जिंदगी में भी जीना साहसपूर्ण है। अध्याय के आखिर में लिखी कविताएं उपचार के दौरान हुई शारीरिक और मानसिक पीड़ाओं को और घनीभूत बनाती हैं। कैंसर की बीमारी और मरीज की मानसिक स्थिति को समझने के लिए यह एक जरूरी किताब है।

पुस्तक : आई.सी.यु. में ताओ लेखिका : रति सक्सेना प्रकाशक : न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, पृष्ठ : 102 मूल्य : रु. 225.

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