सुरेखा शर्मा
‘रेत-सी गर्म ज़िन्दगी, आंसुओं-सी नमस्ते जिन्दगी
कुछ हल्की कुछ भारी कुछ हमारी कुछ तुम्हारी।
कभी हालात की मारी, कभी जान से भी प्यारी है ये ज़िन्दगी।’
ज़िन्दगी की दास्तान सुनाती ये कुछ पंक्तियां है पुस्तक ‘समभाव’ से जिसकी लेखिका हैं डाॅ. शिवा। प्राध्यापिका होने के साथ-साथ कलाकार, लेखिका व कवयित्री के रूप में जाना-पहचाना प्रशंसित नाम है। ‘सम-भाव’ उनका पहला काव्य संग्रह है। कवयित्री ने 89 कविताओं का एक पुष्पगुच्छ पाठकों के समक्ष रखा है, जिनकी खुशबू पाठकों के मन-मस्तिष्क को सराबोर ही नहीं करेंगी अपितु सोचने पर भी विवश करेंगी।
काव्य संग्रह स्वयं में विविध विषयों को अपने में समेटे हुए है। सरल व सहज शब्दों में अपने मन के भावों को कविताओं में पिरोया है। अपने शीर्षक को सार्थक करती हुई एक बानगी देखिए ‘भाव बिन शब्द मानो जीवन बिन पवन/ भाव बिन अभिव्यक्ति मानो/ नेत्र बिन ज्योति/ भाव बिन कविता मानो/ मां बिना ममता।’
सभी कविताएं समाज व जीवन के विभिन्न पहलुओं, जीवन मूल्यों, सूक्ष्म मनोभावों, प्रेम के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों से संबंध रखती हैं। सरल व सहज भाषा में काव्य संग्रह जीवन और जगत से प्राप्त अनुभूतियों के विविध आयामों को लेकर ‘सत्यं, शिवं सुन्दरं’ के रूप में उभरा है। संकलन में देशभक्ति की भी रचनाएं हैं। विषय-विविधता इस कृति की शक्ति है। कवयित्री का प्रथम प्रयास अत्यंत सराहनीय है।
पुस्तक : सम-भाव लेखिका : डॉ. शिवा प्रकाशक : मन्नत पब्लिकेशन, पंचकूला पृष्ठ : 128 मूल्य : रु. 200.