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कहानियों में गहन संवेदनशील दृष्टि

पुस्तक समीक्षा
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सुरजीत सिंह

कृष्णलता यादव के कहानी संग्रह ‘परदे के पीछे का सच’ में 24 कहानियां संगृहीत हैं। इससे पूर्व उन्होंने लघु कथा, निबंध, दोहा, व्यंग्य, गीत और समीक्षा आदि साहित्य विधाओं में भी हाथ आजमाया है।

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लेखिका ने अपने साहित्य लेखन में पशु-पक्षी और अन्य बेजुबानों के माध्यम से अपने विचारों को पाठकों तक बहुत ही मार्मिक ढंग से पहुंचाने का प्रयास किया है। वह कहती हैं कि ‘जब-जब कोई घटना मन से कुछ कह जाए और मन उसको अपने शब्दों में ढाल दे तब तब कहानी बन जाती है।’ उनकी कहानियों में सामाजिक सरोकारों से जुड़ा जीवंत जीवन स्पष्ट दृष्टिगत होता है। कहानियों में ग्रामीण परिवेश जहां पाठक को लुभाता है, वहीं प्रकृति की व्यापकता के दीदार होते हैं।

संग्रह की पहली ही कहानी ‘एक हवेली की दास्तां’ एक नई विधा की कहानी बन पड़ती है, जो हवेली के नव-निर्माण से लेकर उसके अवसान तक की मनोवैज्ञानिक कहानी लगती है, लेकिन कहानी में पात्रों का संवाद न होने से निबंध किस्म की कहानी लगती है। ‘कई मोर्चे, एक सिपाही’ एक स्वान की कथा है, जिसको बड़े लाड़ से पालते, खिलाते और दुलराते हैं। उसके उम्रदराज होने पर उसे घर से निकाल दिया जाता है। लेखिका ने अपने शब्दों में उसका मार्मिक वर्णन किया है। ‘गुलाबो दीदी’ कहानी में गुलाबो के रूप में एक कर्मठ और कर्तव्यनिष्ठ अध्यापिका की कहानी है, जिसे कर्तव्यनिष्ठता अपने वातावरण से प्राप्त हुई है।

इसी तरह से सभी कहानियां बेशक छोटी हैं लेकिन वह पाठक के लिए एक प्रश्न अवश्य छोड़ जाती है। कहानियों पढ़ने में दिलचस्प हैं। कहानियों की विशिष्टता यह है कि लेखिका ने पारिवारिक संबंधों को बारीकी से समझा और कहानी के माध्यम से बयान किया है।

पुस्तक : परदे के पीछे का सच लेखिका : कृष्णलता यादव प्रकाशक : आनंद कला मंच, भिवानी पृष्ठ : 119 मूल्य : रु. 300.

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