मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

छोटी कविताओं में गहरे संदेश

पुस्तक समीक्षा
Advertisement

सत्यवीर नाहड़िया

साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं, मार्गदर्शक भी होता है। सामाजिक अवमूल्यन, विसंगतियों एवं विद्रूपताओं के रेखांकन के साथ समाज और राष्ट्र के निर्माण के लिए राह दिखाना रचनाकार का धर्म होता है। इसी दायित्वबोध की भावभूमि को आलोच्य कविता संग्रह ‘मछलियो! तुम्हें जीना सीखना होगा’ की सृजनशीलता से समझा जा सकता है। कवि बलवान सिंह कुंडू ‘सावी’ ने करीब सात दर्जन छोटी-बड़ी गंभीर विमर्श की छंदमुक्त कविताओं के माध्यम से मार्मिक विचारोत्तेजक अभिव्यक्ति दी है।

Advertisement

इन कविताओं में जहां सामाजिक विसंगतियों पर करारे कटाक्ष हैं, वहीं मौलिक चिंतन के माध्यम से नैतिक पक्ष को उजागर भी किया गया। इन रचनाओं में कहीं यक्ष प्रश्न हैं,तो कहीं प्रकृति एवं संस्कृति से जुड़े प्रसंग हैं, कहीं कविता में कहानी छिपी है, तो कहीं अच्छे कल की कल्पनाएं भी हैं।

कुछ क्षणिकाओं जैसी छोटी कविताएं बड़ा संदेश देने में सफल रही हैं, जिनमें छोटी सी बूंद, मजदूर, कविता, बदलाव, वजूद, वह विधवा, मैं कौन, प्रथम मिलन, चलो साथ चलते हैं, विरहिनी, एक मुट्ठी छांव, मेरी अभिलाषा, लोकतंत्र, ख्वाब, यादें आदि उल्लेखनीय हैं। सूक्ष्म मानवीय संवेदनाओं पर केंद्रित कविताएं मां तुम रोना मत, औलाद, कोल्हू का बैल आदि बेहद मर्मस्पर्शी हैं।

संग्रह में प्यारी गौरैया, कोकिला उपवन में क्यों नहीं आए, अपनी हिस्से की धूप, सावन ने हर कुर्ता पहना जैसी कविताओं में प्रकृति प्रेम देखते ही बनता है। कविता ‘मैं देशद्रोही नहीं’ किसान आंदोलनों पर हल्की राजनीतिक टिप्पणियों का करारा जवाब है। शीर्षक कविता-मछलियो! तुम्हें जीना सीखना होगा की तरह तू इंसान बताते जाना, आओ ऐसा देश बनाएं, हे स्त्री मत सहना प्रभावी एवं भावपूर्ण बन पड़ी हैं।

पुस्तक की भूमिका में दो विद्वानों आचार्य शीलकराम तथा अमृतलाल मदान की टिप्पणियां बेहद प्रासंगिक एवं प्रेरक हैं। कलात्मक आवरण, सुंदर छपाई तथा सरल-सहज भाषा कृति की अन्य विशेषताएं हैं, किंतु कहीं-कहीं वर्तनी की अशुद्धियां अखरती हैं।

पुस्तक : मछलियो! तुम्हें जीना सीखना होगा रचनाकार : बलवान सिंह कुंडू 'सावी' प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर पृष्ठ : 140 मूल्य : रु. 200.

Advertisement
Show comments