दीपों से शृंगार
दीपावली के दोहे
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ऐसा दिन तो साल में,
आता बस इक बार।
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जब करती सारी धरा,
दीपों से शृंगार॥
तम में रहकर दीप ने,
लिखा नया अध्याय।
जो दुःख में भी खुश रहे,
वह योगी कहलाय॥
आज अमावस ने धरा,
पूनम जैसा वेश।
हुए प्रफुल्लित जीव सब,
पुलकित है परिवेश॥
तमस मिटाने के लिए,
दीपों का संघर्ष।
पीर छिपाकर जलन की,
बांट रहे हैं हर्ष॥
दीपक बाती-तेल का,
है संबंध अटूट।
आज उजाला लुट रहा,
लूट सके तो लूट॥
अवसादों का भूलकर,
तम से भरा अतीत।
झिलमिल झालर रच रही,
उजले-से नवगीत॥
दीपशिखा उल्लास से,
इठलाकर बल खाय।
जैसे आज उजास में,
जुड़ा नया अध्याय॥
आतिशबाजी भी नया,
सुना रही संगीत।
और फुलझड़ी लिख रही,
दोहा मुक्तक-गीत॥
आसमान का दृश्य यह,
देख हुए सब दंग।
किसने ये बिखरा दिए,
स्वर्ण सरीखे रंग॥
मंगलमय हो सभी को,
दीपों का त्योहार।
लक्ष्मी जी की हो कृपा,
भरे रहें भंडार॥
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