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लघुकथाओं में मारक-तारक तेवर

पुस्तक समीक्षा
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सुरेखा शर्मा

‘संस्कार सरोवर’ डॉ. मधुकांत द्वारा रचित 115 लघुकथाओं का संग्रह है। पुस्तक में दरकते रिश्तों में दरार, सामाजिक, पारिवारिक और राजनीतिक संस्कारों से विहीन जीवन की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है। रचनाकार ने जीवन में और समाज में घटने वाली हर छोटी-बड़ी घटना को बहुत ही सहज और सार्थक भावाभिव्यक्ति दी है।

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रचनाकार जब अपने समय की निर्मम सच्चाइयों से सामना करते हैं, तो वास्तविकता को संवेदना के धरातल पर परखने की कोशिश करते हैं। इसलिए उनसे कोई भी विषय अछूता नहीं रहता।

लघुकथाएं जैसे ‘अपना-अपना पेट’, ‘नरसी का भात’, ‘दर्द का जंगल’, ‘विषैले बीज’, ‘पेंशन वाली मां’ और ‘दोस्त’ संवेदनाओं को झकझोरने वाली लघुकथाएं हैं। ‘अपना-अपना पेट’ लघुकथा समाज के उन भूखे-बेबस बच्चों की ओर ध्यान आकर्षित करती है।

संग्रह की कुछ अन्य लघुकथाएं रक्तदान करने को प्रेरित करती हैं। लघुकथा ‘प्रार्थना’ में संवादात्मक शैली का प्रयोग करते हुए बोर्ड पेपर पर बैठने वाले बेटे के उज्ज्वल भविष्य की चिंता में एक पिता किस तरह से सुपरिंटेंडेंट से प्रार्थना करता है कि ‘उसके बेटे को नकल न करने दी जाए’। यह संग्रह की सार्थकता को सिद्ध करती लघुकथा है, जो मन को छू जाती है। ‘नकली नोट’, ‘समय का पहिया’, ‘नैतिकता की परीक्षा’, ‘फरिश्ता’ आदि नैतिकता का पाठ पढ़ाती लघुकथाएं हैं।

‘मेरा अध्यापक’ आज की शिक्षा और शिक्षक समाज पर एक करारा तमाचा है। आज के बच्चे 21वीं सदी के बच्चे हैं, जिन्हें कोई पाठ लिखकर रटवाया नहीं जा सकता; बल्कि शिक्षक को उसका आदर्श बनना पड़ता है। ‘असली शिक्षा’, ‘शिक्षा-दर-शिक्षा’, और ‘समझ’ इसी तरह की प्रेरक लघुकथाएं हैं। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि लघुकथा में ‘मारक शक्ति’ होती है, पर डॉ. मधुकांत की लघुकथाओं में ‘तारक शक्ति’ भी है।

पुस्तक : संस्कार सरोवर लेखक : डाॅ. मधुकांत प्रकाशक : राइज़िंग स्टार्स, दिल्ली पृष्ठ : 127 मूल्य : रु. 300.

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