रतन चंद ‘रत्नेश’
मोसाद या मोसाड दुनिया की सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसी मानी जाती है। जिसने भी इस्राइल और इसके नागरिकों को नुकसान पहुंचाने की जुर्रत की, वह मोसाड के हाथों कभी बच नहीं पाया है। इसी का दस्तावेज समेटे है ‘मोसाड’, जिसे अंतर्राष्ट्रीय बेस्टसेलर का दर्जा प्राप्त है। इस पुस्तक में ऐसे कई व्यक्तियों के नाम, परिचय और उनकी कार्यप्रणाली दर्ज है जो इस गुप्तचर संस्था से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहे हैं। 14 मई 1948 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद डेविड बेन-गुरियन इस्राइल के पहले प्रधानमंत्री बने थे और उनके नेतृत्व में ही 13 दिसंबर, 1949 को मोसाड अस्तित्व में आया। इस्राइली डिफेंस फोर्स के कमांडर कैप्टन मेइर डागान ने ‘रिमाॅन’ नाम से पहली गुप्त टुकड़ी तैयार की थी जो अरबों का वेश धारण कर दुश्मनों के अंदरूनी इलाकों में घुसकर काम करती थी।
डागान एक ऐसा गुरिल्ला था जो युद्ध के नियमों तक की परवाह नहीं करता था। उसका जन्म 1945 में यूक्रेन के एक ट्रेन के कूपे में हुआ था। 1995 में मेजर जनरल बनने के बाद जब नौकरी छोड़कर वह स्वतंत्र जीवन जी रहा था, तभी उसके पुराने मित्र प्रधानमंत्री एरिक शेरनाॅन ने उसे मोसाड का भार सौंपा। इसी ने 2002 में मोसाड की गिरती साख को बचाया था। डागान के अलावा आइसर हारेल, डेनी यातोम, मेइर एमिट आदि रेमसाड (मोसाड के निदेशक) के कार्यकाल में हुए कई दिलचस्प गुप्तचर मिशन का इसमें जिक्र है जिसके मूल लेखकद्वय हैं माइकल बार-ज़ोहार और निसिम मिशाल। अनुवाद किया है जाने-माने लेखक मदन सोनी ने।
उद्धृत है कि मोसाद ने अन्य देशों के सहयोग से भी कई आतंकियों का सफाया किया। यहां तक कि 9/11 के ट्विन टावर्स पर हुए हमले के बाद एफबीआई ने जिन बीस आतंकवादियों की सूची जारी की थी, उसमें पहला नाम इमेद मुग्नियेह का था जो कई नरसंहारों के लिए वांछित था। उसका खात्मा भी इसी गुप्तचर संस्था के सहयोग से हुआ।
पुस्तक : मोसाड लेखकद्वय : माइकल बार-ज़ोहार व निसिम मिशाल अनुवाद : मदन सोनी प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस, भोपाल पृष्ठ : 369 मूल्य : रु. 499.